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________________ १३४ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा. ५ कुड्यांतर-भीत, कनात के त्राटानो अंतरपट राखी स्त्री-पुरुष ज्यां मैथुन सेवे त्यां ब्रह्मचारीएरहेवू नहीं, कारण शब्द, चेष्टादिक विकारनां कारण छे. ६ पूर्वक्रिडा-पोते गृहस्थावासमां गमे तेवी जातना शंगारथी विषयक्रिडा करी होय तेनी स्मृति करवी नहीं: तेम करवाथी ब्रह्मचर्य भंग थाय छे. ७ प्रणीत-दूध, दही, घृतादिमधुरा अने चीकागवाला पदार्थोनो बहुधा आहार न करवो. एपी वीर्यनी वृद्धि अने उन्माद थायछे अने तेथी कामनी उत्पति थाय छे. माटे ब्रह्मचारीए तेम करवू नहीं. ८ अतिमात्राहार-पेट भरीने अतिमात्राहार करवो नहीं तेम अति मात्रानी उत्पत्ति थाय तेम कर नहीं. एयी पण विकार वधे छे. ९ विभूषण-स्नान, विलेपन करवां नहीं, तेमज पुप्पादिक ब्रह्मचारीए ग्रहण कर नहीं, एथी ब्रह्मचर्यने हानि उत्पन्न यायछे. एम विशुद्ध ब्रह्मचर्यने माटे भगवते नववाड कहीछे, बहुधा ए तमारा सांभळवामां आवी हो; परंतु गृहस्थावासमां अमुक अमुक दिवस ब्रह्मचर्य धारण करवामां अभ्यासीओने लक्षमा रहेवा अहीं आगळ कंइक समजणपूर्वक कही छे.
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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