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________________ धर्मना मतभेद भाग ३. ११५ जे पूर्ण दर्शन विप अत्रे कहेवाचं छे ते जैन एटले निरागीनां स्थापन करेलां दर्शन विपे छे. एना वोधदाता सर्वज्ञ अने सर्वढी हता; काळभेद छे तोपण ए वात सिद्धांतिक जणाय छे. दया, ब्रह्मचर्य, शील, विवेक, वैराग्य, ज्ञान, क्रियादि एनांजेवां पूर्ण एकेए वर्णव्यां नथी. तेनी साथे शुद्ध आत्मज्ञान, तेनी कोटिओ, जीवनां च्यवन, जन्म, गति, विग्रहगति, योनिद्वार, प्रदेश, काळ, तेनां स्वरुप-ए विपे एवो मृक्ष्म योधछे के जेवडे तेनी सर्वजतानी निःशंकता थाय. काळभेदे परंपरान्नायथी केवळज्ञानादि ज्ञाना जोवामां नयी आवतां, छतां जे जे जिनेश्वरनां रहेलां सिद्धांतिक वचनो छे ते अखंड छे. तेओना केटलाक सिद्धांतो एवामूक्ष्म छे के जे एकेक विचारतां आखी जींदगी वही जाय. जिनेश्वरना कहेलां धर्मतत्त्वथी कोइ पण प्राणीने लेश खेद उत्पन्न यतो नधी. सर्व आत्मानी रक्षा अने सर्वात्म शक्तिनो प्रकाश एमां रह्यो छे. ए भेदोवांचवाथी, समजवाथी अन ते पर प्रति अति मूक्ष्म विचार करवायी आत्मशक्ति प्रकाश पामी जैनदर्शननी सर्वोत्कृष्टपणानी हा कहेवरात्रे छ. वह मननयी सर्व धर्ममत जाणी पछी तुलना करनारने आ कथन अवश्य सिद्ध थशे. निर्दोष दर्शननां मूलतत्त्वो अने सदोष दर्शननां मूळतत्यो विपे अहीं विशेप कही शकाय एटली जग्या नथी.
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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