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________________ धर्मना मतभेद भाग ३. ११३ च्छित साधनोथी मनुष्यनां मन हरण की. दुनिआ मोहमा तो भूळे डुबी पडी छे ; एटले ए इच्छित दर्शनथी गाडररुपे थइने तेओए राजी थइ तेनु कहे मान्य राख्यु, केटलाके नीति, तथा कंइ वैराग्यादि गुण देखी-इत्यादिक देखी ते कथन मान्य राख्यु. प्रवर्तकनी बुद्धि तेओ करतां विशेष होवाथी तेने पछी भगवानरुपज मानी लीधा. केटलाके पैराग्यधी धर्ममत फेलावी पाछळथी केटलांक सुखशीलियां साधननो बोध खोशी पोताना मतनी वृद्धि करी. पोतानो मत स्थापन करवानी महान भ्रमणाए अने पोतानी अपूर्णता इत्यादिक गमे ते कारणथी वीजानुं कहेलु पोताने न रुच्यु एटले तेणे जुदोज राह काड्यो. आम अनेक मतमतांतरनी माळ थती गइ. चार पांच पेढी एकनो एक धर्म मत रह्यो एटले पछी ते कुळधर्म थइ पड्यो. एम स्थळे स्थळे थतुं गयु. . शिक्षापाठ ६०. धर्मना मतभेद भाग ३. जो एक दर्शन पूर्ण अने सत्य न होय तो वीजा धर्म मतने अपूर्ण अने असत्य कोई प्रमाणथी कही शकाय नहीं ए माटे थइने ने एक दर्शन पूर्ण अने सत्य छे तेना तत्वप्रमाणथी वीजा मतोनी अपूर्णता अने एकांतिकता जोइए. ए वीजा धर्ममतोमा तत्त्वज्ञान संबंधी यथार्थे सूक्ष्म विचारो नथी. केटलाक जगत्कर्त्तानो वोध करेछे; पण 15
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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