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________________ ११० श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाला. कहे छे; केटलाक क्रियाने कहे छे । केटलाक विनयने कहे छे अने केटलाक शरीरने साचव, एनेज धर्ममत कहे छे. ___ए धर्ममत स्थापकोए एम बोध कयों जणाय छे के अमे जे कहीए छीए ते सर्वज्ञवाणीरुप छ; के सत्य छे. वाकीना सधळा मतो असत्य अने कुतर्कवादी छे तथा परस्पर ते मत वादीओए योग्य के अयोग्य खंडन कयु छे. वेदांतना उपदेशक एज वोधेछे ; सांख्यनो पण एज वोध छे. वौधनो पण एज वोध छे. न्यायमतवालानो पण एज वोध छ; वैशेषिकनो एज वोध छे , शक्तिपंथीनो एज बोध छे; वैष्णवादिकनो एज वोध छे. इस्लामीनो एज बोध छे. अने एज रीते क्राइस्टनो एम वोधछे के आ अमारं कथन तमने सर्व सिद्धि आपशे. त्यारे आपणे हवे शुं विचार करवो? ___वादी प्रतिवादी बने साचा होता नथी, तेम वन्ने खोटा होता नथी. बहु तो वादी कंइक वधारे साचो; अने प्रतिवादी कइक ओछो खोटो होय. अथवा प्रतिवादी कंइक वधारे साचो, अने वादी कंइक ओछो खोटो होय. केवळ वनेनी वात खोटी होवी न जोइए. आम विचार करतां तो एक धर्ममत साचो ठरे; अने वाकीना खोटा ठरे. जिज्ञासु-ए एक आश्चर्यकारक वात छे. सर्वने असत्य के सर्वने सत्य केम कहीशकाय? जो सर्वने असत्य एम कहीए तो आपणेनास्तिक ठरीए ! अने धर्मनी सचाइ
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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