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________________ भीखारीनोखेदभाग २. उपजाति, विद्युत् लक्ष्मी प्रभुता पतंग ; आयुष्य ते तो जळना तरंग; 11 पुरंदरी चाप अनंगरंग ; शुं राचिये त्यां क्षणनो प्रसंग ? ८१ विशेषार्थ :- लक्ष्मी वीजळी जेवी छे, वीजळीनो झव - कार जेम थइने ओलवाइ जाय छे, तेम लक्ष्मी आवीने चाली जाय छे. अधिकार पतंगना रंग जेवो छे, पतंगनो रंग जेम चार दिवसनी चटकी छे ; तेम अधिकार मात्र थोडो काळ रही हाथमांथी जतो रहे छे. आयुष्य पाणीना मोजां जेतुं छे. पाणीनो हिलोको आव्यो के गयो तेम जन्म पाम्या, अने एक देहमां रह्या के न रह्या त्यां वीजा देहमां पड पडे छे. कामभोग आकाशमां उत्पन्न थता इंद्रना धनुष्य जेवा छे. इंद्रधनुष्य वर्षाकाळमां थइने क्षणवारमा लय थई जाय छे; तेम यौवनमां कामना विकार फळीभूत थई जरा वयमां जता रहे छे; हुंकामां हे जीव ! ए सघळी वस्तुओनो संबंध क्षणभर छे. एमां प्रेमबंधननी सांकळे वंधाइने शुं रावं ? तात्पर्य एसघळां चपळ अने विनाशी छे, तुं अखंड अने अविनाशी छे ; माटे तारा जेवी नित्य वस्तुने प्राप्त कर ! ए बोध यथार्थ छे.
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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