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________________ (५) झषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. कुर्वत्यनिष्टं कमठासुरे श्री नागाधिपे चामितन्नक्तिपूजां ॥ योः समादृष्टिरद्यदीया, पार्श्वप्रनुर्विघ्ननिदे स वोऽस्तु ॥४॥ शब्दार्थ-कमगसुरे अनिष्ट करे इते अने नागाधिपे (धरणे३) अत्यंत नक्ति पूजा करे उते पण जेमनी दृष्टि ते बन्ने (कमठ तथा धरणेंइ) नपर समान हती एवा ते श्री पार्श्वनाथ प्रत्नु तमारा विघ्नोनो नाश करवाने अर्थे थान ॥४॥ येनाहती ज्ञातकुलं प्रवृद्धि, नीतं नितातं निजकावतारात् ॥ स विश्वविश्वार्चितपादपद्मः, पायादपायात्मनुवईमानः॥५॥ शब्दार्थ-जे अरिहंत प्रनुए पोताना अवतारथी ज्ञातकुलने अत्यंत वृद्धि पमामयुं बे, विश्वे पूज्यु ले चरण कमल जेमनुएवा ते श्री वईमान प्रन्नु तमा नाश (मृत्यु) की रक्षण करो ॥५॥ दृषत्समानोऽपि हि यत्प्रसादमाप्याति मूढः पुरुषोऽतिददः ।। आदेयवाग् स्याङगतीजनेषु, वयं स्तुमस्तान सुगुरून् सुरखून ॥६॥ शब्दार्थ-जेमना प्रसादथी पथ्यर समान मूढ पुरुष पण जगतना मनु. ष्योने विषे अत्यंत विज्ञान अने ग्रहण करवा योग्य वाणीवालो थाय ने एवा ते सुगुरु रूप कल्पवृदने अमे स्तवीए गए ॥६॥ आ प्रमाणे उ काव्यथी मंगलाचरण करीने पी श्री शुभवईनगणी 'मूल ग्रंथनी टीकानो आरंन करे .. आ संसारने विषे नाना प्रकारना नवमां नपार्जन करेला असंख्य पा१ पापना तापनो नाश करवाने चं समान, नविक जनना समूहने अत्यंत मंगवर लकारी अने सर्व सिहांतोना समुश्रूप श्री धर्मघोष स्टूरिए रचेला सर्वागमोक्त करआ महर्षिमंझलना स्तोत्रनु कांक व्याख्यान अल्पबुध्विालो हुँ पोताना अने था परना अनुग्रहने माटे लवु ई. ( आर्यावृत्तम.) ' नतिजरन मिसुरवर-तिरीममणिपंतिकं तिकयसोहे ॥ पायपंकेरुहे न मिमो ॥१॥ चरि
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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