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________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (99) विगेरे सर्व लब्धि प्राप्त थइ. एक दिवस इंड् देवसनामां दर्षथी प्रशंसा करवा लाग्यो के, “सनत्कुमार मुनि जेवी रीते रोगने सहन करे बे तेवी रीते बीजो कोइ करशे नहि." इन आवां वचन सांगली उत्पन्न यह बे इर्ष्या जेमने एवा ते विजय ने वैजयंत बने देवता वैद्यनां रूपने धारण कर तत्काल सनत्कुमार मुनिनी पासे आया अनेकवा लाग्या के, "हे राजर्षि ! तमारा या सर्वे रोगोनो अ तत्काल नाश करीए.” मुनिए कयुं "कया रोगोनो नाश करवामां तमारी शक्ति बे ?" देवतानए कर्तुं “हे साधु ! केटला प्रकारना महारोगो कहेला बे ?” मुनिये . " हे वैद्यो ! बाह्य अने आभ्यंतर एवा जेदथी रोगो वे प्रकारना बे. मां कया रोगोनो नाश करवामां तमारी शक्ति बे ?" तेनए कयुं . " हे मुनि ! बाह्य रोगनो नाश करवामां अमारी शक्ति बे." ते सांजली मुनिये क. "दे महाभाग ! ते शक्ति तो म्हारी पण बे." एम कही मुनिये पोताना हाथनी प्रांगली पोताना मुखमां नांखी सुवर्ण समान बनावी आपीने तेमने कह्युं के, " श्लेष्मादिकथी म्हारा बाह्य रोगो नाश थाय छे; परंतु आभ्यंतर रोगो नाश तानी तेनो तमे विनाश करो.” देवतारूप वैद्योए कहुँ. " हे साधु ! यात्र्यंतर रोग समाववाने अमारी शक्ति नयी. ते रोगोने नाश करवामां तो तमरीज शक्ति बे." एम कही तेनए पोताना स्वरूपने प्रगट करी देवसनामां इे करेली तेमनी प्रशंसा कही संजलावी. पबी तेन मुनिने नमस्कार करी स्वर्ग प्रत्ये गया. मुनि, सनत्कुमार पण अनशन व्रत धारण करी सनत्कुमार देवलोक प्रत्ये गया. त्यांथी चवीने महाविदेह क्षेत्रने विषे कर्मनो दय करी सिद्धि पामशे. पच्चास हजार वर्ष कुमार अवस्थामां, पच्चास हजार वर्ष सामान्य राजापणे, एक लाख वर्ष चक्रवतीपदे ने एक लाख चारित्रमां एम ए सनत्कुमार चक्रवर्त्तीतुं कुल ऋण लाख वर्षनुं श्रायुष्य हतुं. ॥ इति सनत्कुमार चक्रवर्ती चरित्रम् ॥ ॥ श्री शांतिनाथ चरित्रम् ॥ जेमले गर्भमा रह्या बतां सर्व जीवोने शांति करी बे, ते शांतिना करदार श्री शांतिनाथने हुं नमस्कार करूं कुं. श्री शांतिनाथ जिनेश्वरना वार 1
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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