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________________ पांव चरित्र.. (६७) राव्या. वली तेमणे पोतानां कर्मनी शुध्नेि माटे जिनेश्वर प्रणित शास्त्रना बहु पुस्तको लखाव्यां अने वस्त्र, अन्न, पान विगेरेथी शुक्ष नाववमे चार प्रकारना संघनी बहु नक्ति करी. तेमज शुभ अशनादिकमी पात्रनुं पोषण, अगएय व्यथी दीन पुरुषोना नहार अने घोषणा पूर्वक पोताना देशमां अमारी प्रवर्त्तावी. लोकमां महा ऽर्गति अने दुःखदायी एवा द्यूतादि सात व्यसननो निषेध करवा पूर्वक जिनालयने विषे पूजादि कृत्यो कराव्यां. वली “उत्तम तीर्थोमां मुख्य शत्रुजय पर्वतने विषे नावणी श्रीजिनेश्वरनी यात्रा करवायी मलीन मनुष्योनां हत्यादि सर्वे पापो नाश थाय छे." आबु गुरुनां मुखनुं वचन सांजली पांझवो पोताना श्रात्माने मलीन जाणता - उता विचार पूर्वक त्यां यात्रा जवानो विचार करवा लाग्या. पठी तेनए दशाई, राम कृष्ण विगेरे अनेक राजानने बोलाववा माटे पोताना दूतो मोकख्या; तेथी त्यां तीर्थयात्रा माटे अनेक राजा आव्या. पली बहु नाक्वाला पांचे पांमवो, बहु शोनावाला श्रीसंघने साथे लइ श्री शत्रुजयनी तीर्थ यात्रा - माटे चाख्या. दयाथी निंजाइ गयेलां चित्तवाला पांमवोए मार्गमां पुर पुरने विषे म्होटा जैन प्रासादोनो नहार करवा पूर्वक दीन मनुष्योने नाना प्रकारना वहु दानो श्रापवां मामयां. पांडवो शुनावथी चार प्रकारना संघनी उत्तम नोजनादिवमे नक्ति करता, तेमज रौप्यमय जिनालयोमा स्नात्र पूजा नणावता इता. संघने विषे निरंतर नत्तम नाववाला मनुष्यो जिनेश्वरोना गीतो गाता, पात्रो जिनालयमां नृत्यो करता अने वाद्यक पुरुषो वाजींत्रो वगामता.केटलाक लोको पालखीमां वेसीने, केटलाक दिव्य हाथी नपर बेसीने, केटलाक घोमान नपर स्वार अश्ने अने केटलाक पगे चालीने नत्साह धरता उता जिनेश्वर- पूजनादि करवा जता. अनुक्रमे बहु दिवसे संघ, शत्रुजयनी तलेटीनी बजारमा प्रावी पदोच्यो. त्यां ते शत्रुजय पर्वतने जोश बहु दर्ष पामवा लाग्यो. पठी दशा) सहित कृष्ण बलन सारा लग्नने वखते महोत्सव पूर्वक श्रीधर्मपुत्र युधिष्ठिरने संघना अधिपतिपणानो अनिषेक करयो. सवारे सर्व संघ सहित संघपति [युधिष्ठिर] विमलाचल नपर चमवा लाग्या के, जे विमलाचल पगले पगले खरेखर पूर्व कर्मनो नाश करे . अनुक्रमे श्री संघ हर्षश्री श्री तीर्थराजना वारणामां आवी पहोच्यो. त्यां तो केटलाक श्री
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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