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________________ 2 1 पांव चरित्र. ( ४४७ ) ऊट अहिं श्राव अहिं श्राव अने कामदेवना तापथी तप्त थयेला मने वेगथी थालिंगन दइने प्रसन्न कर." तेनां आवां कानने दुःख नपजावनाएं वचन सांजलीने शैपदीये करूं. “हे मूढ ! तुं यावुं कुष्ट पुरुषनी पेठे नीच कुलने योग्य मने न क. कारण म्हारा गुप्त पतियो उन्मार्गे जनारा अने नीतिमार्ग त्यजी देनारा तने निश्वे यमलोक प्रत्ये पहोचामशे, माटे तुं मनने विषे तत्त्वने धारण कर. " ८८ प्रमाणे कहती एवी डुपदराजपुत्रीने केशे पकमी कुष्ट कीचके पाटुवमे प्रहार कस्यो, क्षैपदी पण शीलना अतिशयपणाथी बुटीने तुरत राजा पासे आवी. त्यां ते राजसनामां युधिष्ठिरने जोता बतां वीखराइ गयेला केशवाली शैपदी या प्रमाणे पोताना पतिना गुप्त नामनो उच्चार करवा पूर्वक गाढ स्वरथी रोवा लागी. "जेन रणसंग्राममां (युधि) स्थिर रहेनारा बे, (युधिष्ठिर) जेन जयंकर बे, (नीम ) जेन निश्वे विजयना चिन्हवाला बे, (विजय- अर्जुन) ने जेन बलवंत वे दाने धारण करनारा बे. ( नकुल सहदेव) आवा भूपतियो म्हारा प्रिय प्राणनाथो बतां मने कीचके पीमा पमामी. " आ प्रमाणे कूट रोषाक्षरथी रुदन करवा पूर्वक विलाप करती ौपदीने कँक ( युधिष्ठिर) गुरुए कह्युं. " हे चंचल नेत्रवाली ! जो कोइ स्थानके त्हारा महाबलवाला गुप्त पतियो होय, वली तेमां जो व्हारुं नियमयी रक्षण करनारो कोइ जयंकर (जीम) पति होय तो, हे कमलमुखी ! अहिं तने तेनाथी जय नाश पामो. ( अर्थात् भीमसेन पासे तुं एष्ट कीचकने मरावी नाख. ) अने तुं पोताने स्थानके जा. " कंकगुरुनां श्रावां वचन सांगली शैपदीये रात्रीने वखते नीम पासे जश्ने पोतानी सर्व बात कही. जीमसेने पण मोहमां बुमि जश्ने तेने मधुर वचनथी कह्युं के, “ में धर्मपुत्रनी सत्य प्रतिज्ञा पालवा माटे दुर्योधननो अपराध सदन कस्यो बे; परंतु दवसां आ कीचकना आवा अपराधने सदन नहि करूं. हे प्रिया ! आज रात्रीने विषे तुं कपटसंगनां वचनथी तेने यहिं लाव्य के, जेथी करीने व्हारा ए शत्रुने हुं अहिं या रंगमंरुपमांज तुरत मारी नाखुं." जीमे आ प्रमाणे आश्वासन करेली शैपदीये पोताने आश्रमे जता रस्तामां मलेला कीचकने कपटमोद वचनथी रात्रीए रंगमंरुपमां श्राववानुं कहाँ, पी शैपदीनां वचनथी हर्ष पामेलो ते शठ कीचक रात्रीना पहेला पदोरने विषे " हे वा! तुंक्यां वे ? क्यां वे ?” एम उच्चार करतो ऊट रंगमं
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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