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________________ पांव चरित्र. ( ४श्य ) रुषोनो विनय एज तेमनुं पराक्रम समजवुं. कुलमां अंगारारूप अरे दुर्योधन ! त्हारां कुलने नाश करवामां कालरात्रीरूप या पतिव्रता ौपदीने तुं त्यजीदे. अरे ! प्रात्हारो पिता तो व्हारथी प्रांधलो देखाय बे; परंतु पापी एवोतुं तो व्दार ने अंदर बन्ने रीते आंधलो देखाय बे. " भीष्म पितानां आवां वचन सांगली दुर्योधने तेमने कह्युं. “ श्रा युधिष्ठिरादि पांच पांवो चार वर्ष पर्यंत वनवास जान अने एक वर्ष गुप्त रीते रहो; परंतु तेरमा वर्षने विषे तेन क्यां गुप्त रीते रह्या बे, तेनी शोध करवा माटे अनुचरो मोकलीश. मां जो तेन जलाइ श्रावशे तो तेनने फरीथी बार वर्ष पर्यंत वनवास जवुं परुशे.” युधिष्ठिर या सर्व वात अंगीकार करी तथा गुरुने प्रणाम करी तुरत स्त्री ने बंधुन सहित पोताना हस्तिनापुर प्रत्ये गयेो. त्यां तेणे मनमां जरा पण खेद नहि धरता पोताना पिता पांगु राजानी प्रागल दुर्योधननुं सर्व चरित्र कही बतायुं. जेने हृदयमां बहु पीमा उत्पन्न यह बे एवा पांकुराजा एसर्व सांजलीने मुहूर्तमात्र मौन रह्या एटले सत्य प्रतिज्ञावाला युधिष्ठिरे तेमने फरीथी कह्युं के, " हुं म्हारी प्रतिज्ञा शीघ्र पूर्ण करीश. गमे तो धैर्य - वास सहित साम्राज्य पदनो नाश याय अथवा तो सर्व वस्तुनो नाश श्रवाथी वनवास करवो मे; परंतु निरंतर पोतानुं कहेतुं पालनारा पुरुषोने था लोकमां सर्व प्रकारनी समृद्धि प्राप्त थाय बे. हे पिता ! तमे धिर ने वीर हो, माटे क्षत्रियना कुलने योग्य एवी धीरज धारण करीने पोतानी प्रतिज्ञा पालवाने एकचित्त थयेला अमोने वन प्रत्ये जवानी आज्ञा आपो. " श्रा प्रमाणे युधिष्ठिर बहु प्रग्रहणी पितानी आज्ञा लइ अने मधुर वचनवमे माताने प्रसन्न करी तुरतमाता, बंधु, ौपदी ने सुना सहित वन प्रत्ये जवा निकल्या. पी मार्गने विषे दुर्योधननी प्राज्ञायी क्रूर एवा कर्मीर ने महापलाद ए बन्ने जसा निष्पाप एवी शैपदीने जय पमावा लाग्या, परंतु ते बन्ने जाने भीमसेने प्रहार करीने काढी मूक्या. विदुरे पण पांरुवोनी पाबल जर तेमने सर्वने विद्यादान पूर्वक शीखाम पी. त्या पबी पांवोए सत्कार करेला विदुर पोताना नगर प्रत्ये व्या. पांवो वनमां गया, ए वात शैपदीना बंधु धृष्टद्युम्ने सांगली; तेथी ते त्यां प्रवीने पांचे पांवाने पंचालदेशना श्राभरणरूप पोताना कांपिल्यपुर ५४ 1
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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