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________________ ( ४१५ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. पादन करेली बहु लक्ष्मीनुं उत्तम फल मानता एवा तेणे त्यां त्रण विश्वने पुण्यना कारणरूप हस्तिनान नामे तीर्थनुं स्थापन करीने म्होटो महोत्सव कस्यो युधिष्ठिरे प्रनुनी प्रतिष्टाना उत्सवमां बोलावेला दशाई बलदेव कृष्ण अने वीजा पदादि अनेक राजानं धाव्या हता. कोइ वखते मणिमय स्तंनोने विषे प्रसरी रहेला प्रतिबिंबवाला ते सर्व राजान सनामां वेग हता. एवामां भूपतिये बोलावेलो दुर्योधन पोताना बंधुन सहित बहु परिवारथी परवस्त्रो थको त्यां श्राव्यो. बहु देदीप्यमानपणाथी जा प्रकाशमांज स्थिर रह्या होयनी ? एम रत्ननां सिंहासन उपर बेठेला यादवोने तथा पांवाने जोइ ते मनमां बहु आश्चर्य पाम्यो. पठी बंधुन सहित दुर्योधने नीलमणिनी जीतो तथा भूमिवाला स्थानने विषे जलनी शंकाथी पोतानां वस्त्रो उंचां लीधां अने स्काटिकमणिनां स्थानने आकाशनी शंकाथी क कवा लाग्या. तेनी यावी चेष्टा जोइने बीजा राजानने बहु दसवुं श्राव्यं. वली स्फाटिकमणिनी नीतोमां प्रसरी रहेला प्रतिबिंबवाला राजानने जोइ ते तरफ जतो एवो दुर्योधन ते जीतनी साथे अथमालो. था प्रमाणे सनामां प्रवेश करवामां चांति पामेला दुर्योधनने जोइ कया कया भूपतियोए हास्य नहि कर होय ? अर्थात् दुर्योधननां प्रावां चरित्रश्री सर्वे राजानु बहु हास्य करता इता. पठी बहारथी तो सूर्यकांतमणिनी पेठे शीतल पण अंदरथी तो अरणीना काटनी पेठे ज्वाजल्यमान ग्रह रहेला, क्रोधरूप दावानलवाला दुर्योधने त्यां नत्सव कस्यो. या वखते युधिष्ठिर राजाना प्रमाण रहित एवा दानशोयेने जोड़ वहु लज्जा पामेला कल्पवृकादि सर्वे तुरत मेरुपर्वतना शिखर उपर नाशी गयां. “ सर्व धर्मनुं मूल दया वे " एम जाणता एवा युधिष्ठिरे सर्व प्रकारनां दानश्री चारणमुनि विगेरे साधुनने तथा नृपादि अनेक जनाने संतोष मामीने विदाय करया. उत्तम वस्त्र रत्नादिकश्री संतोष पमामेलो बंधु सहित दुयोंधन परा पोताना पिता ( धृतराष्ट्र ) ने मामानी साथे पोताना नगर प्रत्ये यावीने गुप्त रीते या प्रमाणे विचार करवा लाग्यो. "या पांकुरा जाना पुत्रो बाल्यावस्याश्री मांगीने कपट करवामां चतुर, पोतानां घरने वि 학 ये नग, हृदयमां फुट थने उपरथी बहु मीतुं बोलनारा वे, हे पूज्यो ! निश्चे कृष्ण वन्य प्रात वेला साम्राज्यपदे करीने मदोन्मत्त श्रयेला अने गर्व
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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