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________________ ( ४५० ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्ध. रमां गई. प्रभुनुं पूजन करी रह्या पटी तेथे त्यां बेठेला कोइ ज्ञानी गुरुने पोतानो पूर्वभव पूग्यो. या अवसरे त्यां अर्जुन पण बेग हता; तेथी ते पण मुनिये वर्णन करेला दुर्गंधाना पूर्वभवने सांजलवा लाग्या. सुनिये कह्युं के, " हे शुभे ! तुं पूर्वजन्मने विषे कोर श्रेष्ठ ब्राह्मणना कुलने विषे उत्पन्न थ हती. एक दिवस जैनधर्म रहित एवी तें, एक जैन मुनिने उद्देशीने देषथी हास्य पूर्वक सखीनी आगल एम कह्युं के, " हा निरंतर जलस्नान रहित प्र ने केवल वनमा रहेनारो या यतीश्वर, निश्वे पोतानां उज्वल वस्त्रने बहु म लीन करे वे." एम कहीने तें पोतानो हाथ के उपर मूकीने म्हों मचकोमधुं. हे वत्से ! ग्राम करवाथी तें जे कुकर्म उपार्जन करयुं, तेनुं फल सांजल. पठी तुं मृत्यु पासीने नरकने विषे उत्पन्न थइ. त्यांथी चंगालना कुलमां जनमी. त्यांथी जुंरुणी थइ. अनुक्रमे ठेवट या मनुष्य जवने पामी तेमां पनामी ने परिणामथी त्हारुं दुर्गंधवालुं शरीर थयुं, तेथी आ जवमां प तुं त्रिपदीना स्थानरूप दुर्गंधा थइ. कह्युं वे के जीव पूर्वे करेलां कर्मने शुं नवी जोगवतो ? अर्थात् पूर्व कर्मने निचे जोगवे बे. जे जिनेश्वर योगी प्रभु, पुरुषशेने पूज्य वे अने जे त्रा लोकमां निवास करनारा प्राणीयोथी श्रेष्ट वे, तेमनी मुझने धारण करनारा निःपरीग्रही साधुन शुं निंदा करवा योग्य ठे? जेन सहा मिथ्यात्वनो नाश करनारा वे, जेन महाव्रतरूप लक्ष्मीने धारण क वामां समर्थ ने जेन श्री अरिहंत प्रजुना धर्मरूप कसलने प्रफुल्लित क वामां सूर्यरूप वे एवा मुनियो त्रण लोकमां निंदा करवा योग्य केम होय ? तुं तीर्थ प्रभावी सर्व कुकर्मनो नाश करी सौभाग्यवाली थइश वली तुं निरंतर तीर्थ सेवा कर के, जेग्री करीने तुं तत्काल वोधीवीज पामीश. " या प्रमाणे सुनीश्वरे कह्युं एटले दुर्गंधा तथा अर्जुन ए वन्ने जगाए तीर्थ प्रनावने जालीने दर्प पूर्वक श्री तीर्थकर प्रजुने तथा गुरुने प्रणाम करुया. पत्री थोमा कालमा पोताना ग्रात्माने धन्य मानतो अर्जुन, मणिचूरूमित्रसहित तीने विषे ही त्रण दिवस रह्यो, पती श्री कृष्ण अर्जुनने निपुण जागी पोतानी द्वारका नगरी प्रत्ये बोलाव्यो. त्यां तेमले परस्पर एक बीजानी प्रीतिनी वृद्धि मां पोतानी व्देन सुना ही अर्जुनने थापी. अन्य तीथेने वि पवित्र देहवाल अर्जुन, पोतानां कर्मनो नाश करवा माटे
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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