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________________ ( ३८४ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. "; बंधी सर्वे प्रकारना रोगो उदय आवता नथी. वली हुं, स्त्री पशु पिंरुकादिश्री रहित एवा गाम, नगर, खाण, देवालय, वन श्रने पर्वतनी गुफा विगेरे स्थानोमां वसु ढुं. जेथी म्हारो विहार पण तमारा कहेवा प्रमाणे प्राशुक बे. तमे साधुनो जे प्राशुक विहार कह्यो, ते या में कही बताव्यो तेज बे. आवा श्रवच्चा पुत्र सूरिये आपेला प्रश्नोतरथी शुक गुरु बहु आनंद पाम्यो. व. ली ते शुक गुरू बघा अंगना मध्यमां रहेला सेलक अध्ययनना प्रसिद्ध प्रश्नो पूग्या, ते पण ते महासूरिये क्षणमात्रमां कही बताव्या. पी मोहनीय कर्मन क्षयश्री प्रबोध पामेला शुक संन्यासी ये नक्तिश्री श्री थावच्चा पुत्रने नमस्कार करी बन्ने हाय जोमीने कह्युं के, “हे जगवन् ! म्हारा उपर प्रसन्न यइने आप मने संसार समुने तारवामां वहा समान जैनधर्मनो उपदेश करो. "पढी यावच्चा पुत्र सूरिये, संसारना जयश्री वैराग्य प्रगट करनारी नव तत्त्वमय उत्तम धर्मदेशना आपी अने संसार समुझमां वहाए समान यति धर्मनुं संदेपथी निरुपण करयुं. तेने सांजलीने गलि गयो वे मोह जेनो एवा शुक संन्यासीये यावच्चा पुत्र गुरुने कयुं. " मने उत्तम ज्ञान विना आवा संन्यासि थवाना कष्टथी सिद्धि यह नहि. खरं बे, जेवा तेवा रसश्री सुवर्ण सिद्धि क्यांथी होय ? अर्थात् नज होय. हे गुरो ! प्रापनीज पासे जैनत्रत आदरवानी इच्छा करूं कुं. कारण पूण्यना समूदी प्राप्त थयेला उत्तम मार्गने कयो पुरुष न अंगीकार करे ? " गुरुए कहूं. तपस्वी ! जेम सुख नपजे तेम कर." पठी पुण्यात्मा शुक गुरुए पोताना दजार शिष्य सहित ईशान दिशामां जइ गेरुथी रंगेला राता वस्त्रने त्यजी द‍ शीखा विगेरे कढावी नाखी. पठी शासन देवीये श्रापेला वेशने धारण करनारा तथा परिवार सहित एवा ते शुक गुरुने श्री थावच्चा पुत्र सूरिये दीक्षा श्रापी ने साधुनने योग्य एवो आचार शिखव्यो. शुक मुनि पण दर्जना अग्रज्ञागधी पण सुक्ष्म बुद्धिवमे महा स्मृतिने लीधे दृष्टिवादमय सर्वसिद्धांत थोमा वखतमां जणी गया. पी श्रावचा पुत्र सूरिये सद्गुणोश्री शुकमुनिने योग्य जाण। तेमने श्राचार्यपदे स्थाप्या. शुकमुनिना पूर्वना हजार शिष्योए पण दीक्षा लीधी; तेश्री शुक मुनि पोताना पूर्वना परिवार सहित श्री थावच्चा पुत्र मरिनी साधे विहार करवा लाग्या. } ये व्यजनोना समूहने प्रबोध करवामां तत्पर एवा शुक मुनि ५
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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