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________________ ( ३७४) ऋषिमंमलर तिपूर्वाई. म्हारी पोतानी लब्धिये करीनेज शुक्ष्अन्नपाणी ग्रहण करीश." पठी दररोज निकाना काले धारका नगरीमा नमता एवा ते मुनि, नगरवासीजनो नक्तिवंत उता निर्दोष आहार पाम्या नहि. आम निर्दोष आहार नहि मलतां उतां पण खेद रहित, नपवासवाला अने धीरजवंततेमुनिनो बहु काल निर्गमन थयो. को वखते श्री नेमिनाथ प्रनुनी प्रौढ पर्षदामां श्रेष्ठ गुणवाला नत्तम साधुननी पंक्ति जोक्ने कृष्णे जगन्नाथने पूज्यु के, " हे नगवन् ! आ साधुननी पंक्तिमा विशेष तप क्रियावमे कया साधु 5:करकारक ?" प्रन्नुए कह्यु. “ ढंढणा राणीना नदरथी नुत्पन्न श्रयेलो ढंढण कुमार नामे साधु के, जे तमारो पुत्र थाय ने ते बहु उत्करकारक .कारण जे परीषहने विषे अलान्न नामना परीषहने बहु सहन करे ." कृष्णे कडं. “गुणोना मंदिररूप ते अणगार क्यां ठे?" जिनेश्वरे कडं. "हे सौम्य ! हवणां नगरीमां जतां तमने एन्नीकाने अर्थे नमता मुनि मलशे." पठी श्री नेमिनाथने नमस्कार करी श्रीकृष्ण पोतानी नगरी तरफ पाग फरया एवामां तेमणे महेलोनी पंक्तिने विषे फरता, फक्त हामकां अने चाममामय शरीरवाला, लावण्यना समूह विनाना, देखाती नामियोना समूहवाला अने अति उर्बल एवा ढंढण कुमार मुनिने पोतानी आ- | गल जता जो श्री नेमिनाथनां वचनश्री तेमने नलख्या; परंतु तेमना उपर , पुत्रन्नाव लाव्या नहि. पठी हर्षथी पूर्ण नेत्रवाला कृष्ण, तुरत हाथी नपरथी नीचे नतरी त्रण प्रदक्षिणा करी, पोताना मस्तकथी तेमनां चरणमां नमस्कार करी अने हाय जोमीने सामा नन्ना रही प्रसन्न चित्तथी आ प्रमाणे कहेवा लाग्या. दे मुनि! संवरश्री व्याप्त मनवाला तमने धन्य ते. कारण श्रीनेमिनाथ प्रनुए पण कर क्रियावालातमने वखाण्या . श्रेष्ठ गुणोना समरूप हे मुनि! तमेज म्हारुं कुल सफल करयुं के, जे तमने साक्षात् जिनेश्वर पण बहु वखायेते." या प्रमाणे मुनिनी वहु नक्तियी स्तुति करता एवा कृष्णने जोई गोखमा बेठेला को ोठे विचारयु जे, निश्चे आ महात्मा वहु गुणवाला देखाय ठे के, जेमनी श्रीमान् कृष्ण पोते परा ग्रानंदनी स्तुति करे ." पठी कृष्ण तेमने , नमस्कार करी पोताने घेर गया एटले ते मुनि निकाने अर्थे फरता फरता दैवयो. गी पेला शेठना घर प्रन्ये यावी पहोच्या.कृष्णने पण पूज्यपणाथी ते मुनिनेजक्तियोग्य मानी शेप तुरत गोग्वश्री नीचे नतग्यो अने पादरी नमस्कार करा
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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