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________________ देवकीना ब पुत्रोनी कथा. (३६७) ने कह्यं के, “हे नशे! तमे सोमिल ब्राह्मण पासे ज तेने कोटि व्यथी संतोष पमामीने आ म्हारा बंधुना विवाहने माटे तेनी पुत्री सोमश्रीन माणु 'करो अने ते विप्रनी आज्ञाथी नत्तम आनूषणोने धारण करनारी ते कन्याने विश्वास पमामीने सखीयोनी साकन्यानना अंतःपुरमा राखो.” कृष्ण आवीरीते कन्या संबंधि पोताना सेवकोने शीखामण आपीने पनी समवसरणमां जय श्री जिनेश्वरे कहेलो धर्मोपदेश आ प्रमाणे सांनलवा लाग्या. “हे नव्यजनो! कमवा फले करीने नरकगति आपनारा, विषयरूप खारा जलवाला, मोहरूप महा कादवथी परिपूर्ण, संकटपरूप म्होटा नचलता कल्लोलवाला आ संसाररूप समुश्मा पमता एवा मनुष्योने चारित्ररूप वहाण विना रक्षण नथी श्रतुं. विषयो किंपालफलनी नपमावाला बे, शरीरकांति नाशवंत. स्वन्नाववाली अने लक्ष्मी चपल ठे. वली स्वजनोनो समागम तथा वियोग पण हमेशां मल्या करे . अहो ! संसारने विषे बहु विषम ब्रांतियो ने, माटे हे नव्यजनो! तमे मोदसुखने माटे प्रकट नद्यम आचरो.” जिनेश्वर प्रन्नुना आवा श्रेष्ठ नपदेशथी नावित चित्तवाला सर्वे सन्नाजनो संसार नपर विरागपगुं देखामता बता पोतपोताने घेर गया. पड़ी चारित्रमोहनी कर्मनो कय थवाथी विशेष प्रबोध पामेला गजसुकुमाले अरिहंत प्रन्नुने नमस्कार करीने विनंती करी के, “ हे स्वामिन् ! हुं म्हारा मातापिता अने कृष्ण विगेरे स्वजनोनी रजा लश् जेटलामा व्रत अंगीकार करवा अहिं श्रा, त्यां सुधी आप अहिंज रहेजो.” आ प्रमाणे गजसुकुमार प्रन्नुने विनंतीपूर्वक नमस्कार करी घेर आव्यो. त्यां ते हाथ जोमीने वंदनपूर्वक पोताना मातापिताने कहे. वा लाग्यो के, “हे मातापिता! तमे म्हारा नपर प्रसन्न थर फट आज्ञा आपो के, जेथी हुँ नेमिनाथ प्रन्नु पासे चारित्र लनं.” आवां वियोग वनने वृद्धि पमामवामां मेघ समान पुत्रनां वचनने सांजली मनमां बहु खेद पामती देवकीये कह्यु. “ गुणना समुप, पोताना कुलरूप कमलने प्रफुल्लित करवामां सूर्य समान अने श्रेष्ठ रूपना समूहवाला हे पुत्र ! तुं मातापितानो नक्त उतां आवां कगेर वचन शा माटे कहे ? हे पुत्र ! तुं खरेखर म्हारुं जीवित, प्रा. मरण तथा जीवरूप , वली वधारे शुं कहुं, परंतु प्रेमनो समुह अने तीर्थ पारा तुज .पोतानां घरनां श्रेष्ठ आनूषणरूप तुं नोगोने नोगवते ग्ते पुत्रवाली
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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