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________________ (३५०) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. नोहर एवी पोतानी स्त्री सहित बहु हर्ष पामीने कृष्णने या प्रमाणे कहेवा लाग्या. “ते अमारो सर्व मनोरथ पूर्ण करयो मे जेथी तुं अमारा कुलनो आधाररुप . तुं पोतेज विष्णु ने तो हवे अमे त्हासै केटलुंक गुणवर्णन क-/ रीए. पी समुविजय राजाए रजा आपवाश्री कृष्ण परिवार सहित पोताना घर प्रत्ये गया. त्यां ते अंतःपुरमा जश्ने सर्व स्त्रीयोने पूछवा लाग्या के, " श्री नेमिनाथने योग्य एवी कोश्ने कन्या होय तो कहो?" सत्यनामाए कां. “ हवणां रम्यगुणवाली, सती अने राजीमती नामनी नग्रसेन राजानी पुत्री श्री नेमिनाथने योग्य बे. कारण ए सर्व लक्षणयुक्त, सुंदर सर्व अंग. वाली अने सती होवाथी नेमिकुमारनेज योग्य ; परंतु बीजा कोइने योग्य होय एम नथी." पठी कृष्ण "आ योग्य संबंध मे." एम जाणीने हर्ष पा. मता परिवारने साथे लश् नग्रसेनना घर प्रत्ये गया. पी पोताने घेर आवेला कृष्णने सुवर्णना सिंहासन नपर बेसारी बहु प्रसन्न श्रयेला नग्रसेन नूपतिये तेमने मणि मुक्ताफलनी बहु नेटोआपीने संतोष पमामवापूर्वक हाथ जोमीने स्नेहयी विनंती करी के,“हे नाथ!आजे म्हारोमंगलकारी दिवस थयो तेम प्राजे हुं कृतार्थ थयो कारण के, जे आप पोतेज प्रसन्न अश्ने म्हारा घेर पधारया डो. हे देव ! कांश कार्य होय तो मने आशा आपो." नग्रसेननां आवां वचन। संतोप पामेला कृष्णे कडुं. “अहो ! नेमिकुमारने माटे तमारी अति मनोहर राजीमती पुत्रीनी याचना करवा हुं अहिं आव्यो . हे नूप ! आ योग्य संबंध तमे कवुल करो. वली तेम करवाथी विधात्रानो तेमने (नेमिकु. मार तथा राजीमतीने) वनाववारुप श्रयेलो श्रम सफल थशे." कृष्णनां आवां वचन सांजली अति प्रसन्न श्रयेला नग्रसेन नूपतिये निर्मल विवेकने प्रगट करता उता कृष्ण प्रत्ये कडं. "हे यानायक ! तमे आम मध्यस्थनी पेठे केम कहो गे? म्हारा संतान (पुत्रपौत्रादि ) अनेझ्यादि तमारुं न कहेवाय ? पोतानी वस्तु स्वीकार ता तमारे म्हारी प्रार्थना शी करवी होय ? हे नाथ ! जेम आपनी मरजी होय ते प्रमाणे शीघ्र करो. एक तो लोकोत्तर गुणवाला श्री नेमिनाथ म्हारी पुत्रीना पति अशे अने वीजु श्राप म्हारा घर प्रत्ये पाव्या तेथी हुँ जाणु के, निश्च म्हार। पुत्रीतुं पूर्वना शुन पुण्योयी नाग्य जागतुं प्रयु." आम विज्ञानया
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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