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________________ ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वाई. तं वंदे रहनेमिं, चनरोवरसया जस्स गिहे ॥ जो वरिसं बनो, पंचसए केवलीजान ॥ ५६ ॥ ( ३४६ ) अर्थ- जे चारसो वर्ष गृहस्थावासमां ने एक वर्ष बद्मस्थपणे रह्या तेमज जेम पांचसो वर्ष केवलपर्याय पाल्यो ते श्री रथनेमीने हुं वंदना करुं बुं. २६ श्री रथनेमिनी कथा. पश्चिम समुड़ना तीरे द्वारका नगरीमां बलन सहित कृष्ण राज्य करता हता. त्यां दशार्होमां मुख्य श्री समुविजय राजा रहेता हता. तेमने मोलक्ष्मी के हस्तकमलमां जेने एवी शीलने धारण करनारी शिवादेवी नामे स्त्री हती. तेने विश्वने आनंद करनारा, कुलने वंदन करवा योग्य, संसार समुना जयने दूर करनारा अरिष्टनेमि नामना महा जाग्यवंत पुत्र दता. शंखना लांचनवाला, त्रण ज्ञानने धारण करनारा स्नेहवंत अने गाढ मे - घना समान अथवा तो अंजनना समान कांतिवाला ए बाविशमा जिनेश्वर हता. बाल अवस्थामां पण क्रीमा मात्रवमे वृद्धावस्थाना जयंकर जयने जीती यादवकुमारोनी साधे प्रभु पोतानी मरजी प्रमाणे रमता हता. एक दिवस महा तेजवंत एवा प्रभु यादवना कुमारोनी साथे द्वारकामां क्रीमा करता बता कृष्णनी आयुधशालाप्रत्ये गया. त्यां द्वारपालोए सत्कार करेला ते अंदर जश्ने सिंहासन उपर गोठवी राखेलां कृष्णनां सर्व आयुधो जोयां पठी जिनेश्वर प्रजुए, ते शस्त्रो मांदेश्री त्रण खंगमां न वारी शकाय एवा म्होटा शत्रुनना समूहना मदने नाश करनारा सुदर्शन नामनां चक्रने पोताना हाथमां लीधुं अने तेने कुंभारना चाकनी पेठे लीलामात्रमां फेरव्यं. कौमोदकी गढ़ाने पण सामान्य लाकमीनी पेठे नपामी. जाणे महा मंत्रशक्तिवाला वादीये राफमामांथी सर्पनेज खेंची काढ्यो होयनी ? एम प्रजुए नंदक नामना खकुने म्यानमांथी वहार खेंची काढ्यो. त्यारपठी कमलनालःनी पेठे शार्ङ्गधनुष्यना दंमने स करी ब्रह्मांकने फोमी नाखनारो प्रत्यंचानो शब्द कस्यो, ठेवट जिनेश्वरे लीलाश्री पांचजन्य नामना शंखने पोतानां मुखने विषे धारण करी गाउ स्वस्त्री वगामचो. या वखते शंखना जयंकर शब्दश्री
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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