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________________ कीर्तिधर तथा सुकोसल मुनिनी कथा. (३३ए ) क्रीमाथी अत्यंत रमतो एवो वजबाहु कुमार बहु रागवंत थयो. आ प्रमाणे वनमा पोतानी मरजी मुजब क्रीमा करता एवा वजकुमारे अशोक वृदनी नीचे कायोत्सर्गे रहेला एक जीतेंश्यि मुनिने दीग. आम मुनिने देखवाथी वसंत क्रीमाने नुली गयेलो ते राजकुमार खरेखर मुनिनी ध्यानमुशनेज जोवा लाग्यो. निर्भय एवो नदयसुंदर कुमार मरजी प्रमाणे दीर्घकाल पर्यंत वनमां कीमा करी अने मुनिने वंदना करी पोताना आश्रम प्रत्ये जवाने पागे वल्यो; परंतु ते मुनिनी सामुं जोश रहेला वजबाहु कुमारने आ प्रमाणे कहेवा लाग्यो. “हे कुमार ! चालो. स्थिरनेत्र करी ए मुनिसामुंशुं जोश रद्या गे? तमे पण मुनीश्वर थवाना गे के शुं? अहो! तमे चारित्र लेवाना हो तो मने पण कहेजो के, जेथी हुँ पोताना पराक्रमथीज तमारो सहाय्यकारी (तमारी साथे व्रत लेनारो) थानं." नदयसुंदरनां आवां वचन सांजली तत्त्वनो जाण वजबाहु कुमार " अरे जम ! व्रत विना बीजुं शुं रम्य ?” एम कहीने परिवार सहित मुनिने नमस्कार करी त्यां बेगे. मुनिये पण तेमना नपर अनुग्रह करवाने माटेज कायोत्सर्गने पूर्ण करीने क्लेशनो नाश करनारी ‘धर्म देशना आपी. “हे मनुष्यो ! जन्ममरणादि क्लेशे करीने पूर्ण एवा आ संसाररुप समुश्मां वसता उतां तमे वसंतकीमा करवामां केम प्रीति पामो गे? जे मनुष्यो आ उर्खन एवा मनुष्यन्नवने पामीने धर्मने विषे प्रीति राखता नश्री अने केवल क्रीमा करवामांज तत्पर रहे डे तेन निश्चे नरकने विषेज जाय . अरे नव्यजनो ! तमे मनुष्यत्नव न हारी जान अने फट बोध पामो. वली सर्व विकाराने त्यजी द फक्त मुक्तिने माटेज नत्तम एवा व्रतने ग्रहण करो.” मुनिनी आवी धर्मोपदेशना सांजली अति वैराग्यवंत श्रयेला वजबाहु कुमारे पोताना शालाने कडं. “हे नदयसुंदर! हुं प्रव्रज्या लइश, माटे तुं फट म्हारो सहाय्यकारी प्रा.” नदयसुंदर कुमारे कडं. “ में तो हास्य करयु , माटे तमे हवणां चारित्र लेशो नहि." आम शालाए का एटले वजबाहु कुमारे फरीश्री का के, " जेम खाधेलु औषध रोगनो नाश करना थाय ने तेम हास्ययी अंगीकार करेलु अने नत्तम रीते पालेलुं व्रत पण मुक्तिने अर्थेज थाय ." नवोढा एवी मनोरमाए पण तपस्यानो निषेध करवारुप बहु वचन कह्यां; परंतु नत्तम एवा वजकुमारनी पेठे वजवाहुनुं मन
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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