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________________ ( ३२४ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. टिदेवतानुनी साथे त्यां श्राव्या. जेटलामां कुंभराजादि श्रनेक मनुष्यो श्री म विनायना दीक्षाभिषेकनी सुवर्णकुंनादि सर्व सामग्री तैयार करे बे तेटलामां देवेंझेए, पोतानी शक्तिश्री ते सर्व सामग्री तैयार करी. पबी कुंभराजा श्री / मलिनाने बोलावीने एक म्होटा रत्नना मंरुपमां सुशोजित सिंहासन नपर हर्षथी बेसारखा. त्यारबाद कुंजराजानी साथे सर्वे इंझेए ते कुंजोना जलवमे श्री मल्लिनाथ नपर जक्तिपूर्वक अभिषेक कस्यो. या वखते केटलाक प्रजुनी आगल नाटक करता इता, केटलाक मधुर स्वरश्री गायन करता दता, केटखाक आकाशने गजाववा पूर्वक श्रेष्ठ वाजत्रो वगामता दता ने केटलाक तो बहु भक्तिश्री पुष्पवृष्टि करता हता. पबी श्री मल्लिनाथने उत्तराभिमुखे बेसारीने दिव्य वस्त्रालंकारो पड़ेराव्यां. श्रा प्रमाणे अभिषेकनं कृत्य पूर्ण थया पी कुंजराजाए पोताना निपुण कारीगरोने आज्ञा करी के, “दे शिल्पियो ! तमे श्री मल्लिनाथने बेसवा योग्य एवी पालखी तैयार करो.” पबी शिल्पज्ञानमां चतुर एवा ते कारीगरोऐ मणिमय स्तंनोवाली, अनेक प्रकारना रत्न जमित्र जुतलवाली, पेमली योवाली, प्रानंदयुक्त नृत्य करती एवी सुवर्णनी पुतलीयोवाली, मंगपना मध्य भागमां सुशोभित तोरणोथी मनोहर बनावेली, धजान तथा कलशोथी वैमानोनी शोनाने तिरस्कार करनारी, सूर्य समान कांतिवाला मणिजमीत्र पगश्रियावाली, अतिपवित्र अने मनोहर एवी पालखी तैयार कर इंनी प्रज्ञाश्री देवतानए पण एक बीजी पालखी तैयार करी देवता तैयार करेली ते पालखी बीजी पालखी योनी अंदर प्रतिमनोहरपणाने लीधे तेल पूरवाथी दीवानी कलानी पेठे वहु शोजती हती. पठी लक्ष्मीश्री सुशोभित एवा श्री मल्लिनाथ प्रभु, पितानी प्रज्ञाथी तुरत प्रदक्षिणा करीने पालखीने विषे आसन उपर पूर्वाभिमुखे बेटा. ते व खते इंझेए वत्र चामरादिक सर्व वैभव प्रगट करचो. पठी कुंभराजाए महा समृद्धिवाला, दिव्य अलंकारोने धारण करनारा अने संतुष्ट मनवाला पोताना से - वकोने आज्ञा करी के, “हे सौम्य प्राकृतिवंत पुरुषो ! पुण्यना अर्थी एवा तो.. पापने दूरं करवामाटे या पालखीने नपाको. " कुंभराजानी आवी प्रज्ञाथी दर्पित मुग्ववाला, उत्तम वेशने धारण करनारा श्रने प्रसन्न श्रयेला ते सर्वे से - वको, " हुं पेलो, हुं पेलो" एम नचार करवापूर्वक ते पालखीने नपावाला 1
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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