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________________ ( ३०५ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. या म्हारा निवासगृहना अशोकवननी मध्ये पुतली योथी सुशोजित एवा मणिम न्यस्तंजोयी देदीप्यमान, नाना प्रकारना रत्नोथी जमित्र नूपी वालु अने जाये गाठ चंद्रोदयश्री मनोहर एवं वैमानज होयनी ? एवो अद्भुत एक रुप करो. तेना मध्ये व दिशानुमां विविध प्रकारनी रचनाथी चित्तने श्राश्वर्य क रनारा अने मनोहर मध्यभागवाला व घरो बनावो अने ते व घरोना मध्य जा गमां मणिमय जालीयोथी सुंदर एक देदीप्यमान मंदिर तैयार करो. वली ते मंदिरनी अंदर मध्य जागमां किरलोना समूहरूप एक छोटी अने निर्मल एवं मणिपीठिका करो. " श्री मल्लिकुमारीये श्राज्ञा करेला प्रतिगरिष्ट शिल्प शास्त्रीयोए ते सर्व थोमा दिवसनी अंदर तैयार करयुं. पबी मल्लिकुमारी रे पोताना समान प्राकृतीवाली, मस्तक नपर सुवर्णनां पद्मश्री ढांकी दीधेल विश्वाली ने सत्पुरुषाने पण भ्रम करनारी पोतानी सुवर्णनी पोली मूर्ति करावीने ते मंरुपमध्येनी मणिपीठिका नपर मूकी वली दमेशां पोतान श्राहारमांथी गलता रसवालो कोलीयो ते सुवर्णनी मूर्त्तिना मस्तकना बिम नाखवा लागी. अनुक्रमे ए गलता रसवाला एकटा थयेला प्रहारनो महा :सह एवो नासी काने भेदी नाखनारो गंध जाये मरी गयेला कुतरा, सर्व अने वलदना चुंग्रायेला शरीरयीज नीकलतो होयनी ? एम पुतलीना मस्तक नपर रहेला सुवर्णपद्मना ढांकणाने नधामी नाखवाथी निकलवा लाग्यो यौवनावस्था प्राप्त यया वतां परा निरंतर संसारना जोगनी इच्छा रहित एवी तया चारित्रमां केवी रीते वर्तं तेनो प्रथमश्री अभ्यास करती वली पोताना दर्शनी माता, पिता, जाइ विगेरे सर्व स्वजन मनुष्योने अधिक अधिक प्रमन्न करती ए मल्लिकुमारी प्रतिदिन श्रसंख्य एवां सुखने जोगवती हती. हवे सर्व संपत्तिना निवास स्थानरूप कोशल नामना देशने विषे पुसमान सांकेतपुर नामे नगर ठे. त्यां इक्ष्वाकुवंशना आनूपलरूप, वैरीयो ना समूहने दावानल समान प्रतिबुद्धि नामे राजा लक्ष्मीश्री उत्कृष्ट एवां राज्यनुं पालन करतो इतो. तेने रूपसंपतिये करीने लक्ष्मीना सरखी पद्मावनीनामनी सती स्त्री डती. ते नगरमां एक म्होतुं श्रतिशयवालुं नागमंदिर द नं. एक दिवस पद्मावती देवीये मढा दर्प प्रगट करनारा श्री नागदेवनी पूजाजता एवा लोकांना समूहने जो दर्पश्री विनयपूर्वक प्र
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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