SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (ए) ट एवा पोताना बंधुसंबंधी मोहने त्यजी दर केवल सुखकारी एवा जैनध_ मनुं सेवन करो. ॥इति नवमबलदेवमुनिसंबंधकथनरूपो हितीयः प्रस्तावः ॥ श्कागरायवसहो, पमिबुद्धीनाम कोसलासामी॥ तह नेा अंगाए, चंदबाए निरुवमाए ॥१६॥ संखेवकासिराया, कुणालदेसाहिवो तहा रूप्पी॥ कुरुवश् अदीणसत्तु, पंचालपहु अजीअसत्तू ॥१७॥ संजायजाइसरणा, पवश्या प्पि मल्लिजिणपासे ॥ चनदसपुवी एए, जयंतु अपुणप्लवं पत्ता ॥१७॥ अर्थ-श्क्ष्वाकुवंशना राजानमा श्रेष्ठ एवो कोशलादेशनो अधिपति प्रतिबुद्धि, निरुपम एवी अंगा नगरीनो महाराजा चंचाय, काशीनो नृपति शंख, कुणालदेशनो अधिपति रुक्मी, कुरुदेशनो नूपाल अदीनशत्रु अने कांपिढ्यपुरनो नूपति जितशत्रु. ए नत्पन्न श्रयेला जातिस्मरण ज्ञानने लीधे श्री मल्लिनाथ प्रन्नु पासे दीक्षा लश् अने चौद पूर्वना धारणहार अइ मोक्षपदने प्राप्त करनारा (नपर कहेला) गए महाराजा जयवंता वर्तो. ॥श्री मल्लिनाथ चरित्रम् ॥ पूर्व विदेहक्षेत्रने विषे सलिलावती नामनी महा विजयमां लोकोने आश्चर्य करनारी वीतशोका नामे नगरी बे. त्यां शत्रुना सैन्यने मर्दन करवामां समर्थ नुजा दमवालो महा बलवंत बल नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने मनोदर स्वरुपवाली धारणी विगेरे एक हजार स्त्रीयो हती, एक दीवस ए धारणीये सिंह स्वप्नसूचित एवा एक पुत्रने जन्म प्राप्यो. राजाए हर्षपूर्वक ते पोताना पुत्रनो जन्म महोत्सव कस्यो. बारमे दिवसे विविध प्रकारनामहोत्सवधी स्वजनोने संतोष पमामी बल राजाए पोताना पुत्रनुं “महावल" नाम पामयु. पठी पांच धावमातामयी वृद्धि पामतो ते कुमार अनुक्रमे सर्व कलामनो अन्न्यास करतो स्त्रीयोनां चित्तने संतोष करनारी यौवनावस्था पाम्यो
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy