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________________ श्री बल बलदेव चरित्र. ( १५३ ) मृग ए त्रजला ब्रह्म देवलोकने विषे महा समृद्धिवंत देवता यया. मो प्रपवायोग्य एवा ब्रह्मचर्य व्रतने धारण करनारा धने तीव्र तप करनारा श्री बलदेव मुनि स्वर्गमां गया ए एक व्हारा चित्तमां आश्चर्यरुप जलाय . तेमज मोक्ष लक्ष्मीना एक मुख्य कारणरूप सुपात्रदान आपतो एवो सुतार ब्रह्मदेवलोक प्रत्ये गयो ए पण आश्चर्यरूप ठे वली तिर्यंच जातिवालो मृग पण दान, शील अने तपक्रिया रहित बतां केवल नचलता नावयोगथी ब्रह्मदेवलोकमां देवता यो ए पण म्हारा चित्तने विषे श्राश्वर्य वे. - ear देवलोक विषे नृत्पन्न थेयेला बलन देवताने त्यां तुरत प्रवविज्ञान उत्पन्न श्रयुं; तेथी तेमले प्रेमना स्थानरूप पोताना पूर्वजवना बंधु कृष्णने दुःसह वेदनाथी पीमा पामता त्रीजी नरकने विषे दीवा पढी नरकश्री कृष्णनो नार करवाने इवतो ते देव तुरत स्वर्ग की त्यां गयो भने कृ ने प्रेमपूर्वक आलिंगन करी कहेवा लाग्यो के, “हे बंधो ! हुं हारा पूर्व - जन्मनो राम ( बलन ) नामनो बंधु बुं. हुं दीक्षा लइ पांचमा देवलोकमां देवतापणे नृत्पन्न यो ढुं; परंतु प्रेमने लीधे यहिं हारी पासे श्राव्यो बुं. श्राम कहने बलन देवताए पोतानी अप्रमाण एवी दिव्य शक्तिथी कृष्णना जीवन नरकमांथी नार करवा मांगचो; परंतु ते सूर्यश्री गली पकता बरफनी पेठे तुरत गलीने पाठो नरकमांज परुवा लाग्यो. कृष्णे कयुं. “हे बंधो ! दवे तुं मने मूकी दे. कारण एम करवायी मने बहु पीमा थाय बे. " पवी खेयुक्त चित्तवाला देवताए महा वेदनाथी पीमा पामता कृष्णने मूकी दइने कह्युं. " हे जाइ ! त्हारा घोर कर्मने लीवेज हुं तने बीजे स्थानके लइ जवा समर्थ यो नहि; परंतु जो तुं कहे तो हुं व्हारी प्रसन्नताने अर्थे निरंतर हिं रहुं. " कृष्णे कां. " म्हारा दुष्ट कर्मने लीधे प्राप्त थयेली या नरकपीमा तुं म्हारी पासे रहीश, तेथी क्यारे पण दूर थवानी नथी, माटे हे जाइ ! बीजी एक बात कहुं ते सांजल अने ते म्हारा चित्तनी प्रसन्नताने माटे ऊट कर. थापण घोर अवस्थाने सांजली तथा अमिश्री द्वारकाना नाशने सांजली सर्व स्थानके सर्वे खल पुरुषो दर्ष पाम्या बे. परंतु श्रेष्ठ पुरुषाने तो दुःख नृत्पन्न युंबे, माटे तुं श्रेष्ठ पुरुत्राने हर्ष करवा माटे ने खल पुरुषोने खेद करवा ܕܪ
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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