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________________ (200) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्ध. - 66 पठी वनने विषे जमीने कमलपत्रमां जल लइ पोताना बंधु कृष्णने जोवा माटे पोलां करेलां नेत्रवाला बलन्नड़ ते वरुनी पासे श्राव्या, तो त्यां तेमले प्रफुल्लीत पण वस्त्रथी ढांकी राखेला मुखवाला अने सूइ रहेला कृष्णने जोइ विचारयुं के, " बहु श्रमश्री थाकी गयेलो या म्हारो बंधु सुखे सूइ रह्यो बे. " श्राम धारी ते वमवृकनी नीचे कृष्णनी पासे बना रह्या वली “ था म्हारो नाइ पोतानुं शरीर केम नथी हलावतो अथवा तेनां मुख उपर मांखीयो शा माटे जमे बे ? ” एवी शंकाथी तेमणे कृष्णानां मुख उपरनुं वस्त्र दूर क रथं एटले मृत्यु पामवाने लीधे चेष्टा रहित ययेला शरीरवाला पोताना बंधुने जोइ वलन तुरत मूर्छा पाम्या पढी शीतल पवनयी सचेत थया एटले बंधु वियोग ने लीधे प्रति प्राकुलव्याकुल थयेला तेमणे पोताना नाइना चरणने विषे थयेलो वाणप्रहार जोइ तुरत वनना जीवोने त्रास करनारो तथा नयंकर एवो सिंहनाद करघो. वली ते वलन तारस्वर करीने कर्तुं के, “ अरे ! मृत्यु पामवाने इच्चता कया दुष्ट पुरुषे या सुखे सूइ रहेला म्हारा बधुने हयो ? जे या कुकृत्य करयुं होय ते ऊट म्हारी पासे प्रवीने कही द्यो. जे पुरुष पोताना सर्व वलथी बालकने, स्त्रीने, गांगाने, मंदने, मूर्छा पामेलाने, सूइ गयेलाने, रोगीने नेत्र विनाने हो बे तेने सर्व माणसो अधममां पण अधम कडे वे.” पी विह्वल थयेला वलनड़, कोप अने शोकथी ते महा अरण्यमां सर्व: ठेकाले जम्या पण कोइ स्थानके पोताना बंधुनो घात करनार पुरुषने दीठो नहि. पती मननी अंदर थयेला वहु शोकने लीधे बहु वखत सुधी शोक करीने वलनइ पोताना खंजा उपर कृष्णना शरीरने धारण करी ते वननी अंदर फरवा ला-ग्या. जो के बल पोते जाएा तथा वखाणवा योग्य गुणवाला हता, तो पण ते क्यारेक कृष्णना शरीरने पुष्प तथा फलवमे वहु सुशोभित करता. क्यारेक शय्यामां सूवारता ने क्यारेक पोते जलवमे स्नान करावता. आ प्रमाणे कृप्यना शरीरने पोताना खंभा नपर उचकी प्रतिदिवस विविध प्रकारनी चेष्टा. करता वलड़ने व मास श्रया. हाहा! महात्मानं ने पण श्रावी मोहविटंबना थाय बे, वे बलन न्हानो भाइ सिद्धार्थ के, जे चारित्र लइने देवता थयों दतो, तेथे अवविज्ञानची वलनी आवी अत्यंत दुर्दशा दीवी, तेथी ते पोनानी प्रतिज्ञा पालवाने माटे मोहवी अत्यंत मृढ बनी गयेला पोताना बंधुने
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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