SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२७६) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई.. मने के, जे हुं वधुन्नो घात करनार पुरुषोना मध्ये आ प्रथम रेखा पाम्यो .!! अहो ! वसुदेवनो पुत्र थर अने संसार समुने तारनारा श्री नेमिनाथनी निरंतर सेवा करीने में आवं कुकर्म करयुं तो निश्चे हुं धिक्कारवा योग्य बु, श्रा अरण्य क्या, म्हारो निवास क्यां, तमारा सरखा अतिथियो, आवq क्यां अने म्हारा वाणथी तमाळं विधावq क्या ? श्री नेमिनाथ प्रन्नुनुं कहेवू सर्व सत्य अयुं .पाहा! बलवंत पुरुषोने पण दैवयोग क्यारेबीजीरीतेथतो नथी." आम वारंवार शोक करता जराकुमारने कृष्णे कडं. “हे बंधो ! तुं वृथा खेद शा माटे करे , ? हे विवेकी ! कोर्नुनावी मिथ्या थतुं नथी. ज्यारे मनुष्योनो पूर्वे संपादन करेलो पूण्यसमूह क्षय पामे अने पापसमूह नदय आवे त्यारे महात्मा पुरुषोए करेली ःसह विघ्नोनी रक्षा पण निष्फल थाय बे. हे बंधो! श्रा एक नावीज ठे एमां त्हारो अथवा बीजा कोश्नो दोष नथी; परंतु में पूर्वे करेलां नग्र उष्ट कर्मर्नु ए पाप मनेज अति पीकाकारी थइ पम्थु बे, माटे हे बंधो ! तुं शोकने त्यजी दर अने म्हारी आ अवस्था अश् एवी पांडवोने खबर कहेवा माटे आ म्हारा हृदयना कौस्तुन्न रत्नने लश पांमवोना राज्यमां जा, यादवकुलमा फक्त एक वाकी रहेला अने पांवो थकी प्राप्त श्रयेला सुराज्य पदने सेवन करनारा तने पांमवो वृदिपमामो, तेमज त्हाराथी फरी वंशनी वृ हि पण थान. वली हे वंधो !त्हारे पांमवोनी आगल आ सर्व वात निवेदन करीने पठी में अति क्रोधने लीधे ते महा नक्तिवालानने देशमाथी काढी मूक्या हता तेनी मधुर वाणीथी दमा मागवी. अरे ना! हवे तुं अहिंथी न अने ऊट चाल्यो जा, कारण के, म्हारे माटे जल लेवा गयेला बलन्नावशेअने ते त्हाराथी थयेला म्हारा वधने जागशे तो निश्चे पोताना चित्तमां गोत्रदयने नहिं गणता त्हारो वध करशे. वली त्हारे अहिंथी अवला पगथी अर्थात् म्हारा सामं मुख राखीने चाल्युं जयूँ के, जेथी म्हारे विषे अति प्रेम नक्तिवाला व. लन्नइत्दारो वध करवा माटे त्हारी पाठल न यावी शके." अति स्नेहने धागग करनारा कृष्णे यावी रीते वहु बहु वार कडं एटले दीन थयेलो जराकुमार , कृपानी पामयी कौस्तुन्नमणिने लइ चाल्यो गयो. __ हवे अदि कृप्रा पोतानो मृत्युकाल पासे श्राव्यो जाणी सुखश्री अति पीका पामता उता पण उत्तम धर्मवालना गखीने तेमज शुन्न चिनवाला थ
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy