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________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १३७ ) पी लक्ष्मण सहित राम तुरत पर्वत समान जुवनालंकार नामना arit aपर बेसीने परिवारे विंटलाया बता विभीषणदि राक्षसोए करेला विविध प्रकारना नृत्सव पूर्वक रावणना मंदीर प्रत्ये गया. त्यां माणिक्य अने सुवर्णमय एवा म्होटा जिनमंदिरमां प्रवेश करीने तेमणे लक्ष्मण सहित श्री शांतिनाथनी प्रतिमाने नक्तिपूर्वक वंदना करी. पबी विभीषणे आलेलां सुगंधी पुष्पी रामे श्री शांतिनाथनी पूजा करीने बहु थी गर्जित एवा पवित्र स्त्रोत्रव स्तुति करी अने नमस्कार कस्यो. पी विजीपले बहु प्राग्रह पूर्वक सुग्रीव नामंगल विगेरे अनेक सेवको सहित राम लक्ष्मणने पोताना घर प्रत्ये ते जइहर्षी गौरव पूर्वक जोजन कराव्युं. त्यार बाद विशेषे जाण विणे रामने होटा सिंहासन उपर बेसारीने करूं. “ दे नाथ ! निरवा ला हाथी रथ विगेरे श्रापनुंज के अने हुं आपनो सेवक हुं, एम जाणो. वली जो श्राप म्हारा उपर क्रपा करीने मने आज्ञा प्रपता हो तो हुं आपने या सर्वे राक्षसोनी समक्ष लंकापुरीना राज्यनो महाभिषेक करूं. " पी संतो षित चित्तवाला रामे कह्युं के, “हे बंधो ! तें कह्युं ते ठीक, परंतु में तने लंकानुं राज्य आपवानुं कर्तुं बे, ते तुं शुं जूली गयो ? " पी रामे अत्यंत विनयवंत एवा विभीषणने राक्षसोनी समक लंकाना राज्यने विषे अभिषेक करयो. पी सिंहोदरादि राजानं सेवकोने मोकलीने तेमावेली पोतपोतानी प्रति रूपवाली कन्या पोतपोताना बंधुन सहित त्यां आवी. राम अने लक्ष्मण पण ते उत्तम रूपवाली कन्या ने महोत्सव पूर्वक परण्या पबी विभिषण अने सुग्रीव विगेरे अनेक नूपतियोए सेवन करेला अने तेथीज उत्तम सुखने लीधे दर्षवंत एवा राम लक्ष्मण, रावणनी राजधानी (लंका) मां व वर्ष पर्यंत रह्या. श्रा अवसरे विंध्याचल पर्वतनी उपर तपधारीमां श्रेष्ट एवो मेघनाद पोताना नाइ मेघवाहन सहित सिद्धि पाम्यो. ते उपर त्यां मेघरथ नामनुं तीर्थं लोक प्रसीद्ध j. hara सर्व कर्म जेणे एवो कुंजकर्ण पण नर्मदाने विषे सिद्धि पाम्यो, तेी त्यां आज पर्यंत लोकने विषे “रक्षित” नामनुं लोक प्रसिद्ध तीर्थ थयुं. हवे ते अवसर विषे अहिं अयोध्यामां उत्तम शीलधारी एवा रामनी माता कौशल्या तथा कल्याणनां पात्ररूप साध्वी अने विख्यात एवा लक्ष्मसनी माता सुमित्रा ए बन्ने पोतपोताना पुत्र शोकथी आकुल व्याकुल थता 1 1
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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