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________________ ( १३६ ) ऋषिमंगलवत्ति - पूर्वा ६. माटे प्रव. आम यमराजनी पेठे पोतानी सेनानो संहार करता रावणने जोइ तुरत लक्ष्मणे पोताना महादारुण शस्त्रोवमे जेम गरुम पोतानी पांख व सर्पने प्रहार करे तेम प्रहार कस्यो. पबी रावणे पोताना शत्रुरूप लक्ष्मनेति दुर्जय मानीने विद्याना बलथी बहु जयंकर अनेक रूपो धारण क स्व. लक्ष्मणे रावणनां सर्व रूपाने विषे अनेक तिक्ष्ण शस्त्रोनो प्रहार करयो के, जेथी तेना मुख्य रूपने विषे चारे तरफथी अति नय पीमा श्रवा लागी. पठी रावणे पोताना सर्वे रूपोने संहरी लइ चक्रनुं स्मरण करयुं, जेथी तेज वखते ज्वाजल्यमान सूर्यना प्रतिबंव समान चक्र तेना हस्तने विषे प्राप्त थयुं. पी सुर असुरने पण जय आपनारा ते चक्रने जमावीने रावणे राम विगेरे वह शोक करता बता लक्ष्मण उपर फेंक्युं चक्र पण लक्ष्मणनी पासे यावी तेमनी प्रदक्षिणा करवा पूर्वक तेमनी बातीमां प्रहार करी तत्काल बहु पुण्यना योगथी तेमना जमला हस्त कमलनी नपर बेकुं. ग्राम पोतानुं चक्र पण लक्ष्मणना हाथने विषे प्राप्त थयेलुं जोइ अत्यंत खेद पामता रावणे विचारयुं के, " हा हा ! बहु कष्टथी मेलवलुं म्हारुं चक्रपण निष्फल गर्छु. पी निस्तेज बनी गयेला रावणने जोइ तुरत विभीषण तेने कहेवा लाग्यो के, " दे जाइ ! तुं सीताने त्यजी दइ पोताना बंधुन सहित सुखेथी राज्य कर. " रावणे धैर्यनो आश्रयकरी फरी उत्तर आप्यो के, "म्हारा जुजने विषे बहु बल वे, तेथी हुं चक्रसहित ए शत्रुने मुष्टी प्रहारथी इसी नाखीशे, ते तुंजो जे. " आम रावण कहेतो हतो एटलामां लक्ष्मणे चक्र फेंकीने तेनुं मस्तक वेदी नाख्यं धिक्कार वे रावणना दुष्ट अजिमानने !!! पछी रौध्यानमां पराया एवो प्रतिवासुदेव रावण मृत्यु पामीने अनेक दुःखोथी व्याप्त एवी चोश्री नरक प्रत्ये गयो बने श्राकाशमार्गमां जय जय शब्द करता ने हर्षय व्याप्त श्रयेला देवतानए लमलना मस्तक नपर उत्तम सुगंधवालां पुष्पो नी वृष्टि करी. 35 ॥ इति पद्मचरित्रे रावण निग्रहो नाम सप्तमः प्रस्तावः ॥ पती श्री रामना जयश्री नासी जता अने नायक विनाना ते राक्षसोने (वीप कहां के, " हे निशाचरो ! तमे उतावलश्री श्री रामना चरणकमलनो आश्रय करो. कारण के, वां था जारत भूमिने विषे श्रावमा बलदेव श्र
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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