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________________ श्री आदिनाथचरित्र. ( १७ ) मान जलयी जरपूर, चंचल एवा कल्लोलयी नबलतो अने नाना प्रकारना रत्नना समूहथी पूर्ण एवो कीरसमुइ दीगे. बारमे स्वप्ने सुवर्ण तथा रत्नोश्री भरपूर, रत्नजमीत्र सुवर्णना हजारो स्तंभवालुं अने वागती एवी नोबती आनंदना स्थानरूप विमान दीतुं. तेरमे स्वप्ने चंद्र सूर्यना तेज सरखा, मेरुपर्वतना शिखर समान अने स्फुट एवा पांचवर्णनां रत्नोना समूहने दी. चौदमे स्वप्ने प्रसरती एवी ज्वालानी फालेकरीने जटावाला, मध अने घीश्री सिंचन श्रयेला धूमाकारहित अमिने दीगे. - प्रावां चौद स्वप्न जो प्रजाते जागी नठेला मरुदेवी माताये पोताना स्वननो विचार नाभिकुलकरने कह्यो अने पी जेटलामां नाजिराजा तेमने स्वarat विचार headलामां जिनेश्वर प्रजुनी भक्तिथी व्याप्त थयेला इंदे त्यां प्रवीने या प्रमाणे कां. " हे त्रण जगत्नी मात ! हे श्रेष्ठ रत्नगर्भवाली ! तमने हुं नमस्कार करूं बुं. हे देवी! तमारे धर्म ने विषे चक्रवर्ती एवो उत्तम पुत्र थो. पी चैत्र मासनी अंधारी आठमने दिवसे उत्तराषाढा नक्षत्रना योगमां " प्रभु अवतरचा. ते वखते नृप्पन कुमारीकानए त्यां प्रावीने भूमी मार्जन, जल सिंचन, दर्पण, कारी, वींऊला, अने चामर विगेरंना उपचारोथी प्रभुनी सेवा तेमज रानी पोटली बांधवा विगेरे घाट क्रियान करी. पी पूर्ण जक्तिथी जरपूर मानो वा चोसठ इंशे पोतानी नक्तिथी मेरु पर्वतना शिखरने विषे प्रजुने अभिषेक महोत्सव करी, नानी राजाना घरने विषे रत्न विगेरेनी वृष्टी करी तेमज प्रजुनी तथा माता मरुदेवानी नमस्कार पूर्वक स्तुति करी पोत पोताने स्थानके गया. माता स्वप्नामा प्रथम वृषन दीठो हतो तेमज प्रजुना सायलने विषे वृषननुं चिन्ह हतुं ए उपरथी अत्यंत हर्षवाला माता पिताए इंनी प्रज्ञाश्री शुभ दिवसे तेमनुं वृषन (रुषन) एवं नाम पामधुं अरिहंत प्रजुनी सर्व प्राद्य क्रीयान इंज्ञेथीज कराय बे. ए उपरथी एक दिवस इंड दाथमां शेरमीनो सांगे लइ प्रजुनो वंश स्थापन करवा माटे आव्यो पढी आवेला इंइने 'जोइ प्रजुए शेरमीनो सांगे लेवाने माटे लांबो हाथ करो. ते उपरथी प्रजुना वंशजो 5क्ष्वाकु नामना कत्री थया. या प्रमाणे इंथी प्रजुना वंशनी स्थिति यई. माता पिता जेजे श्रवसरे प्रभुने योग्य क्रीया करवानी इवा करतां हतां तेते अवसरे
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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