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________________ ( २३५ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. शक्तिनां यावां वचन सांगली दयावंत एवा हनूमाने तेनेत्यजी दीधी; तेश्री शक्ति पोताने इष्ट स्थाने चाली गइ अने लक्ष्मणने चैतन्य आव्युं पढी विशख्याये पोताना हाथश्री लक्ष्मणनां सर्व अंगने विषे गोशीर्ष चंदननो विलेपकस्यो; जेथी तेमनुं सर्व शरीर तदन घा विनानुं थइ गयं. पढी पूर्वभवना पुण्यश्री पुष्ट एवा लक्ष्मण तत्काल नेत्रने उघामी राम ने नामंगल विगेरे मुख्य अधिपतिना हर्ष सहित उज्जा थया. ते वखते पोताना नेत्रमांथी हर्षनां सुना समूहने वर्षावता एवा ने हर्षथी पूर्ण अंतरात्मावाला राम पोताना ' ने हाथी ऊट लक्ष्मणने जेटी परुया. सुनटो पण नोबत विगेरेना शब्दपूबैंक " हे प्रनो ! आप जयवंता वर्तो !! " एम आशीष श्रापवा लाग्या. वली रामनी आज्ञाथी सुग्रीव विगेरे बहु राजानए एकटा थर दिव्य एवी हजारो कन्यान सहित विशल्यानुं लग्न लक्ष्मणनी साथे करचं. वे आकाशने विषे ठेकाले ठेकाणे रहेली राक्षसोनी परंपराधी लक्ष्मणने जीवता श्रयेला जाणी खेदातुर थयेलो रावण विचार करतो बतो पोताना मंत्रीने कहेवा लाग्यो. “ अरेरे! में एम जाएयुं हतुं के, शक्तिना प्रहारथी लक्ष्मण तकाल मृत्यु पामशे अने तेना वियोगथी दुःख पामेला रामनी पण एज अवस्था घो. त्यारवाद म्हारुं सारुं यशे. वली सुग्रीव विगेरे पायदल नासी जशे, ती कुंक ने इंजित विगेरे म्हारा सुनटो बंधनश्री मुक्त थइ पोतानी मेले पावा श्रवशे. हे सचिव ! लक्ष्मण कया उपायथी जीव्या ? अने हवे रामनुं सेन्य देदिप्यमान थयुं तो म्हारा नाइ, पुत्र विगेरेना बंधनो शी रीते वुटशे ? " आम वारंवार पूठता एवा रावणने तेना मंत्रीयोए स्पृष्ट कह्युं के, 66 सीता पाठी सोंपी रामने प्रसन्न करो के, जेथी तमारा बंधु पुत्रादि मुक्त थाय. " मंत्रीयोना कहेवा नपरथी क्रोधातुर थयेला रावणे कोई एक चतुर गुप्त पुरुपने बोलावी तेने संदेशो कही तत्काल रामनी पासे मोकल्यो. दूत पण त त्काल रामनी पासे श्रावी कहेवा लाग्यो के, “हे राघव ! तमे म्हारुं कपटरहित वचन सांजलो. रावण आपने कदेवरावे वे के, तमे म्हारा जाइ अने पुत्रोने बोमी को तथा यापनी प्रिया जानकी मने अर्पण करो के, जेथी हुं तमने म्हारुं अर्ध राज्य तथा सीताश्री अधिक रूपवंती एवी त्रा हजार कन्यान आपुं. " पर्व रामे कहो. " म्हारे रावणनां राज्यनुं कांड प्रयोजन नथी तेमज सीता विन ·
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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