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________________ ( २१८ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. बल एवा विद्याधरोनी ने राक्षसोनी प्रदोहिणी प्रमाण बहु सेना जेमन हाथीनी पाबल उत्तम दाथणीयो जाय तेम गइ. आवता एवा विभीषणने जोइ रामना सेवको प्रथम तो कोनं पामी गया; परंतु एटलामां तो विनीष - ये पोतानुं श्रववानुं रामने जणाववा माटे सेवक भोकल्यो. सेवके श्री रामने aalveer श्रववानी खबर आपी. या वखते ते सेवकने जोइ विश्वासपात्र थइ गयेलुं सर्व वानरोनुं सैन्य रामने कहेवा लाग्युं. "6 या क्रूर हृदयवाला राक्षसो दंजयुक्त होय बे, माटे प्रथम तेनी जाबविगेरे चिन्दोथी परीक्षा करीने पर्वी तेने आपनी पासे बेसारवो.” सेवकोनां आवां वचन सांगली दूते कां. "ए विभीषण महा विद्याने धारण करनारो, उत्तम धर्मवान्, नीतिमां कुशल अने विनीत बे. एसे सीताने बोमाववा माटे ( रावणने बहु बहु कह्युं . ए उपरथी रावणे क्रोध पामी तेने काढी मूक्यो बे, माटे आपना शरणे आवेलो बे." आवां सेवकनां वचन सांजली रामे तेने द्वारपाल मारफते पोतानी सनामां बोलाव्यो विभीषणे सन्नामां प्रावी रामना चरणने विषे नमस्कार करवा एटले रामे तेने तत्काल बन्ने जुजाथी थालिंगन करयुं. आ वखते रामना वक्षस्थलने विषे जाणे सुंदर नीति अने तaat her at sोयनी ! एम तेन बन्ने जसा शोनवा लाग्या. पनी विनीपणे हा जोमी श्री रामने कह्युं. " हे प्रनो ! अन्यायमार्गे रदेला बंधु राव - 1 साने त्यजी दइ न्यायमार्गे रहेला थप महाराजानी सेवा करवाने हुं श्रावेलो त; माटे पोताना सेवकरूप मने अंगीकार करो.” विभीषणनां श्रावां वचन - श्री अति प्रसन्न श्रयेला रामे कयुं. " हुं तने लंकानुं अधिपतिप पी. कह्युं ठेके - तत्काल प्रसन्न श्रयेला चित्तवाला म्होटा पुरुषो शुं नथी आपता ? अर्थात् सर्व वस्तु पेठे. 35 · पी राम ते हंसदीपमां आठ दिवस रही बहु धूलथी प्रकाशने ढांकी देता सैन्य सहित आगल चाल्या. अनुक्रमे तेमले लंकापुरीना सीमामे आवी विश योजन प्रमाण भूमीने रोकी अगएय एवा सैन्यना हाथी, घोमा अने पायदलना कोटि शब्दयी दिशानने पूर्ण करता पकाव कस्यो. या वखते रावगना सैन्यने विषे पण रोमांचित श्रयेला हस्त, प्रहस्त, शुक अने सारण विगेरे अनेक मुख्य राजानं शत्रु भूपतियोनी साधे युद्ध करवा तैयार था. रावण
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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