SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (०१) अत्यंत रुंदन करवापूर्वक कहेवा लागी के, “हे बंधो ! तमे जयवंता उताहा! हताशा एवी हुँ हणा बु. तमारा बनेवीने युहमां मारी नाखी लक्ष्मण सहित रामे विराधने तेना राज्यासने स्थाप्यो . हे प्रन्नो ! हुं त्यांथी जीव लश्ने नासीने तमारी शरणे आवी बु, माटे पुत्र सहित एवी मने तमे रहण कर्ता थान. रावणे कडं. “ हे व्हेन ! तुं बहु रुदन न कर ! हुं योमा वखतमां त्हारा पति पुत्रादिकने मारनारा शत्रुने मारीश." आम पोतानी व्हेनने धीरज आपी रावण पोताना मंदीरने विषे शयामां सूतो; परंतु सीतानी साथे की. मा करवामां नत्साहवंत एवा तेने निज्ञ आवी नहि. वली एटलुंज नहि, परंतु आज सुधी जानकीनो समागम न श्रवाश्री शयामां सूतेला रावणने स्थलमा रहेला मांडलानी पेठे अत्यंत परिताप थतो हतो. परी दुःखने विषे पमेला पतिने जो मंदोदरी राणीये तेने कर्तुं. "स्वामिन् ! आपने एवं शुं सुख ने ?” रावणे कडं. “हे प्रिया ! सीताना विरहरूप कामानि मने कमलनालनी पेठे बाले माटे तुं मान मूकी दर मारे अर्थे सीताने प्रसन्न कर. नहितो स्थलमां पमेला मांग्लानी पेठे म्हारा प्राण जशे. वली म्हारे गुरुए आ. पेलो एवो नियम के, नहि इचा करती एवी स्त्री नपर बलात्कार करवो नहि." पनी मंदोदरी पोताना स्वामीनी तुष्टीने माटे नद्यानमां सीतानी पासे जर प्रीतिपूर्वक वारंवार कहेवा लागी के, “हे सीता ! हुं अने बीजी आ सर्वे विद्याधर स्त्रीयो त्हारी किंकरीयो बीए, तेमज विश्वनो पति श्री रावण पण दारा दाश्यपणाने मजे , माटे अरण्यमां वास करनारा, सुख रहित अने संपत्ति विनाना एवा पति रामनो तो त्हारे त्यागज करवो जोइए.तुस्वप्न समान संकाने पामी.वली मनुतानो पालक अने त्रिखंमनोनोक्ता तेमज विख्यात पराक्रमवालो रावण त्दारा पूर्वनवना पुण्यथी तने पोताना हृदयरूप कमलने विषे हंसीनी पेठे धारण करवानी श्छा करे जे; माटे तुं संपत्ति रहित एवा 'रामनेत्यजीदश्में लोगवेला एवारावणने नज.कारण विकट संकटने विषेव्रतलो प पापने माटे यतो नथी."मंदोदरीनांआवां वचनसांन्नलीमहासती सीतापाताना बन्ने हाथथी बन्ने कानने ढांकी दश्याप्रमाणे कहेवा लागी."अरे मुग्धा! तु कुली न उतांअकुलीन सरखां वचन केमबोले ? शुंकुलीन स्त्रीयो प्राणांते पण बीजा
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy