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________________ (१५६) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. दैत्य पोताना ना खरने पाठो वाली पोते लक्ष्मणनी साये युः करवा आव्यो. लक्ष्मणे युद्ध करतां ते त्रिशिराने क्षणमात्रमा खावमे मारी नाख्यो, एवामां विराध नामनो को राजपुत्र सैन्य सहित त्यां प्रावी लक्ष्मणने नमस्कार करीने कहेवा लाग्यो के, “आप मने अंगीकार करो. हुं तमारी आज्ञानो व. शवर्ती थइ तमारेज पदे रहीश. आ खरदानव, रावनी सहायश्री पातालसंकाना अधिपति म्हारा पिता चंशेदरने काढी मूकी पोते त्यां रहे . तमे एकला गे उतां शत्रुनो नाश करवामां सिंहसमान गे. तो पण हे प्रसन्न मुखवा. ला! शत्रुने जीती लेवानी मने आज्ञा आपो." लक्ष्मण का “हे राजपुत्र! शत्रुना वधने विषे म्हारे त्हारी सहायश्री सरयुं. कारण हायपगवालाने वीजानी सहाय लेवी ए लड़ा पामवा जेवू ठे. जो पोताना सेवकने विषे स्नेहवाला रामने तुं पोताना स्वामी मानतो हश्श तो म्हारे तने पाताल लंकाना रा. ज्यने विषे स्थापवो.” पठी पुत्रना वधथी अत्यंत क्रोधातुर श्रयेलो तेमज कगेर चित्तवालो खर दानव विरोधने सहाय आपवानां वचन कहेता एवा ल. दमनी पासे आवीने कहेवा लाग्यो के, " अरे लक्ष्मण ! विद्यानुं साधन करता एवा पुत्र शंबूकने हणी म्हारो अपराधी यश तुं शं जीवतो जश्श ?" लक्ष्मणे कां. “हे राजन् ! में हारा पुत्रने विद्यानुं साधन करता मारेलो होवाश्री म्हारं पुरुषार्थ प्रगट अयु नश्री; परंतु विकट वैरी एवा तने पण तेनी पागल विदाय करी हुं म्हारा पुरुषार्थने तत्काल प्रगट करीश." सदमणनां आवां वचनश्री अत्यंत क्रोधातुर अयेलो अने युझना मर्मने जागनारो ते खर दैत्य सऊ श्रश् आकाशमां मेघनी पेठे तिक्ष्ण वाणोनो वरसाद वरसाव: वा लाग्यो. पठी लक्ष्मण पग नग्र एवा वाणोश्री तुरत शत्रु तरफथी आवता संख्यावंध वाशोना वरसादने बंध करवा माटे आकाशने विषे सुर्यमंमलने ढांकी देनारा शरमंझपने वनावी दीधो. या प्रमाणे अनेक विधाधरोनी समक्ष दीर्घकाल सुधी तेने युःइ करावी लदमणे पोताना तिक्ष्ण शस्त्रथी ते खर दानवर्नु मस्तक वेदी नाल्यु. ठेवटे सुन्नटोमां मुकुटरूप लक्ष्मणे नग्रसेना सहित दूपण नामना दैत्यने पण मारी तत्काल देव अने दानवोने विषे विजय लक्ष्मी प्राप्त करी. ॥इति श्री पद्मचरित्रे खरषण विनाशो नाम पंचमः प्रस्तावः॥
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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