SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१७३) कोधातुर यश्ने कई के, “अरे ! सुन्नटो! पुत्रीनुं हरण करनार आ चोरोने तुरत मारो ! मारो!!” पी जेटलामा एक लाख योशन राम लक्ष्मणने मारवा माटे तैयार या तेटलामां लक्ष्मणे पोताना धनुष्यने चमावी तत्काव विश्वने पुरो देनारो टंकार शब्द कस्यो, धनुष्यना आवा नयंकर शब्दथी सर्वे शत्रु नाशी गया. महिधर नूपति पण पोते लक्ष्मणनी पासे आवी अने तेमने नलखीने हर्ष पामतो तो कहेवा लाग्यो. "हे कुमार लक्ष्मण! धनुष्य नपरथी बाणने नीचे उतारो. तमे म्हारी कन्याना अगण्य पुण्यने लीधेज आ वननां आवी चम्या गे." पी लक्ष्मणे धनुष्य उपरथी वाण नीचे नतारयु एटले प्रसन्न मुखवालो राजा महिधर रामनी पासे आवी हाथ जोमीने आ प्रमाणे विनंती करवा लाग्यो, “हे राम ! पूर्वे आ कन्या में लक्ष्मपने आपी हती अने अनुकुल दैवयोगने लीधे तेननो आजे मेलाप थयो ये." 'एम कहीने तेणे महोत्सव पूर्वक सीता अने लक्ष्मण सहित रामने पोताना पुरमा प्रवेश कराव्यो. . एक दिवस राम अने लक्ष्मण राजसन्नामां बेग हता एवामां को दूते प्रा. वीने महिधर नूपतिने कडं के," हे पृथिवीपाल? आप सान्नलो. नंद्यावर्त पुरना महाराजा अनंतविर्य पोतानी सहाय्यने माटे आपने बोलावे . कारण ए राजा दशरथना पुत्र नरत नामनाबीजा नूपतिनी साथेयुःकरवाने नत्साहवंत थया ने तेमांन्नरतनी तरफ घणांनूपतियो एकगथयारे,माटे अमारा राजाए आपने बलवान् जाणी तेमावेल .” दूते आ प्रमाणे कर्वा एटले लक्ष्मणे ते दूतने पूज्यु. "त्हारा राजाने नरतनी सारे युः करवानुं कारण शुं ?" तेणे नत्तर आयो के, “अमारो राजा नरतनी पासे पोतानी सेवा कराववानी चा करे ने अने गर्वधारी नरत तेनी आज्ञाने जरा पण मानता नथी. एज ए बन्ने बलवंत नूपतियोने युः करवानुं कारण ने.” परी राम लक्ष्मणना दाक्षिण्यपणाने लीघे महिधर नूपतिये दूतने कद्यु. “हे दूत ! दवणां तुं जा, हुं पण आयु वं." महिधर राजा पा प्रमाणे कही दूतने विदाय करीने पठी रामने कहेवा लाग्यो ते, “ नंद्यावर्तनो अधिपति अनंतवीर्य अमने वृथा युः करावे .” पठी गुप्त क्रोधथी व्याप्त श्रयेला रामे महिधरने कयुं के, “ हुँ सेनानी साथे जश् ए अनंतविर्यने मारीश, वली हे नराधिप ! तमे अहिंज रहो. हुं सैन्य सहित त्यां
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy