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________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १५३ ) पोतानी अद्भुत शोभाथी बीजी श्रेष्ट स्त्रीयोनां रूपने पण तीरस्कार करनारी शुद्ध शीलवती कौशल्या नामनी स्त्री दती. बीजी पोताना शीलव्रतना तेजथी सूर्यनी कांतिने पण मलीन करनारी सुमित्रा नामनी स्त्री दती. त्रीजी धर्म विषे बुद्धिवाली, सौभाग्यवती ने पतिने घणीज वहाली एवी सुप्रना नामनी स्त्री दती. W दवे ते वखते मदा समुना मध्य जागने विषे मनुष्योने स्वर्गनी विश्रम करावनारी लंका नगरीने विषे, रत्नश्रव विद्याधरना कुलरूप वनमां केसरीसिंह समान, कैकसी विद्याधरीना नदररूप तलावने विषे दंस समान, विश्वने जयंकर, प्रौढ विद्यामां पंचम पराक्रमवालो, महा तेजवंत, राक्षसोनो अमेश्वर, श्री जिनेश्वरना चरणकमलनी सेवामां तत्पर अने विभीषण तथा कुनकर्णनो जाइ एवो प्रतापवान् प्रतिवासुदेव रावण राजा राज्य करतो दतो. एक दिवस सजाने विषे सिंहनी पेठे सिंहासन उपर बेठेला, पराक्रमथी सर्व राजानुनो पराजव करनारा, तेजस्वीनमां श्रेष्ट, कोटी सुजट एवा रक्षकोए तथा विद्याधरोए निरंतर सेवा करेला, इंना समान कांतिवाला, देव, दानव ने मनुष्योथी नाश नदि करी शकाय तेवा, मृत्युथी पण जय नहि पामनारा, विश्वने आक्रमण करवामां लंपट अने जीवित वे प्रीय जेने एवा ते रावणे कोई एक अष्टांगनिमित्तना जाए एवा श्रेष्ट नैमित्तिकने बोलावीने पू के, " म्हारुं मृत्यु कोनाथी यवानुं बे. रोगथी के बीजा को थी ते कहो ? रावसे आम प्रश्न करयुं एटले नैमितिके क्षणमात्र विचार करीने कर्तुं के, “हे रावण महाराजा ! सांजलो. कोशला नगरीना अधिपति अने इक्ष्वाकुवंशना शिरोमणिरूप श्री दशरथ राजाना पुत्र राम लक्ष्मणश्री मिथिला नगरीना पति जनकनी पुत्री सीताना कारणे तमारुं मृत्यु थवानुं बे. " नैमितिकनां आवां वचन सांजली रावण शंकायुक्त थयो एटले पासे बेठेला विभीषणे गाढ स्नेहना वशी तेने कहां के, " हे नाथ ! जो था नैमितिक सत्यवादी "" } दशे, तोपण हुं बलात्कारे तेनां वचन मिथ्या करीश. हुं दशरथ राजाने अने जनकनूप तिने ए वन्नेने मारी नाखीश तो पढी तमारा वध करनारानी नस्पतिज शी रीते थशे ? " तेनां आवां वचन सांजली रावण "लोकमां दारु सहोदरपणुं श्रेष्ट वे." एम वखारा करतो तो अत्यंत संतोष पाम्यो. २० 1
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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