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________________ श्री महापद्म चरित्र. (१३१) रु नयी. नाना प्रकारना रूपथी निरंतर संसारने विषे नमता एवा सर्वे प्राणीयोने कोण पोता, अने कोण पारकुंडे ? अर्थात् को नथी. वली जेम घी गयेला प्राणीयोनी रात्री सर्वथा वृया जाय ले तेमज मोहथी घेरायला मूढ प्राणीनो जन्म पण वृथा जाय , तेथी आ संसारने धिक्कार ! धिक्कार !! हे नव्य प्राणीयो ! एटला माटे संसारना स्वरूपने जागनारा विवेकि घुरुषोए प्रमादनो नाश करी धर्मने आचरण करवो.” प्रतुनी आवी धर्मदेशना सांजली सना आनंदयुक्त थइ. पडी केटलाके श्रावकधर्म अंगीकार कस्यो अने केटलाके चारित्र लीधुं. कुंन राजाए वैराग्यने लीधे राज्यनो तृरानी पेठे त्याग करी दीक्षा लश् श्री अरनाथ जिनेश्वरना प्रथम गणधरपदने धारण करचुं. ,परी देवतान प्रन्नुनो महिमा करीने नंदीश्वरहीपे गया. श्री अरनाथ प्रन्नुने ‘साठ हजार साधुन, तेटलीज गुणवंत साध्वीयो, एक लाख अने अंशी हजार 'श्रावको, ता त्रण लाख अने चोराशी हजार गुणवंत श्राविका हती.पनी नगवाने समेतशैल शिखर पर एक मासने अनशने निवृत्तिपद धारण करयु. ते वखते देवतानए श्रावीने प्रन्नुनो मोद महोत्सव कखो. आ अरनाथ जिनेश्वरना तीर्थने विषे चोविश युगवमे कोटिशिला नामना पर्वत पर बारक्रोम साधुन सिक्षिपद पाम्या ने. मल्लिनाथना तीर्थने विषे वीश युगवमेब क्रोम साधुन सिस्पिद पाम्या जे. मुनि सुव्रतना तीर्थने विषेत्रण क्रोम साधुन सिइिपद पाम्या ने अने श्री नमिनाथना तीर्थने विषे एकक्रोम साधुन सिक्षिपद पाम्या . एज कारण माटे कोटिशिला तीर्थ सर्व तीर्थोमांउत्तम कहेवाय ने. ॥ इति श्री अरनाथ चरित्रम् ।। ॥अथ श्री महापद्म चरित्रम् ॥ श्रा नरतवर्षना कुरुक्षेत्रने विषे गजपुर नामे नगर ने. त्यांश्क्ष्वाकुकुलमा नुत्पन्न श्रयेलो पद्मोत्तर राजा राज्य करतो हतो. तेने श्रावक धर्ममांतत्पर एवी ज्वाला नामे मुख्य पहराणी हती. तेने एक सिंदस्वप्नसूचित विष्णुकुमार नामनो अने बीजो चौद महास्वप्ने सूचित चक्रीपदने धारण करनारो मदापद्म नामनो एम बे पुत्रो इता. अनुक्रमे ते बन्ने पुत्रो सर्व कलामां प्रविण ध
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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