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________________ ऋपिमंगलवत्ति-पूर्वाई. य सुनिये याप्रमाणे नियाणुं करधुं प्रने प्रमिततेजे नियायुं करचं ना पठी ले बन्ने जान मृत्यु पामी प्राणत देवलोकमां साथीयाना सरखा श्र कारवाला नंदकावर्त नामना वैमानमां दिव्यचूल ने मणिचूल नामना महते समृवित देवता श्रया. त्यां तेमले समग्र देवकार्य करी, दिव्य सुख जागेवी तेनज जिनचैत्यवंदन विधि करवापूर्वक नंदीश्वर द्वीपसां यात्रा करीने पोताना सम्यक्त्व रत्नने उज्वल करयुं. (चौथो तथा पांचमो भव . ) ( C ) या जंबूडीपना पूर्व महाविदेह क्षेत्रनी मध्यमां रहेली रमणीय नामनी विजयमा शुभगा नासनी नगरी बे. त्यां गांजीर्य विगेरे गुणोथी समुना सरखो महा प्रतापर्यंत स्तिमितसागर नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने पवित्रशीली पृथ्वीना समान पहेली वसुंधरी ने गुरायुक्त एवी वीजी प्रहरी एम वे स्त्रीयो हती. हवे दिव्यचूलनो जीव प्राणत देवलोकथी चवीने वसुंधरीना उदरने विषे श्रवतरचो. माताये ते वखते रात्रीये स्वप्तामां गज, पद्म सरोवर, चंड़ ने वृपन जोया. कारण ते चार बलदेवना जन्मने सूचवनारा शुज वे. पर्वी वसुंधरीये पूर्ण अवसरे सुवर्णना सरखी कांतिवाला पुत्रने जन्म प्राप्यो. पिता तेनुं पराजित एवं उत्तम नाम पारुयुं पटी मणिचूलनो जीव पण प्राणत देवलोकश्री चवी नुदरीना उदर रूप मानसरोवरने विषे हंसनी पेठे उत्पन्न यो. ते वखते रात्रीमां अनुधरीये स्वप्नाने विषे सिंह, सूर्य, कुंज, समुझ, लक्ष्मी, रतनो राशी ने अभिज्वाला ए सातने पोताना मुखने विषे प्रवेश करता दीठा. पठी जागी नवेली धनुधरीये स्वप्नानी वात पतिने कही एटले स्तिमितसागर राजाए स्वप्न पाठकने बोलावी स्वप्ननी बात कही एटले तेणे करूं के,"हे राजन् ! या स्वप्नश्री तसने वासुदेव पुत्र अशे अने प्रथमनो पुत्र बलदेव श्रो.” पठी राजाए धनादिकश्री सत्कार करेलो स्वप्नपाठक पोताने घर गयो, पती तुम्हरीये पूर्ण अवसरे श्यामकांतिवाला पुत्रने जन्म प्यो पिताए तेतुं 'अनंतवीर्य' नाम पारुयुं. अनुक्रमे कलाउनो अभ्यास करता करता युवावस्थामां ग्रावी पहोचेला श्रने रूप लावण्यश्री मनोहर एवा पुत्राने स्तिमितसागर राजाए उत्तम कन्यानु साथै पराव्या. एक दिवस ते नगरीना नद्यानने विषे उत्तम ज्ञानधारी स्वयंप्रजप्रभु ना ते
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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