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________________ २५५ ] सत्यामृत दोनों जाग रहे हैं और कुछ बातें कर रहे हैं। गिर पड़ा और अपने मानसिक पापका प्रायश्चित्र यात मुनने के लिये यह चुपचाप द्वार पर खड़ा मांगा । बाप ने कहा-बेटा ! अगर सच्चा पश्चात्ता हो गयः । माता पिता से कह रही थी-नुम लड़के हो जाय, ऐसा पश्चाताप जो उस पाप की लेइ कोडम्बानी क्यों करते रहते हो? जब देखो तब मात्र भी पुनरावृत्ति न होने दे और किसी भी रूपरे उसकी भूल ही बताते रहते हो! मैं देखती हूं, न होने दे तो अलग प्रायश्चित्त की ज़रूरत नहीं इससे वह सदा अप्रसन्न रहता है। ऐसे होश्यार रहती। लड़के से तुम प्रेम क्यों नहीं करते ! ____ मतलब यह है कि प्रेम स्वपर-कल्याणकारी पिताने कहा-तुमने कैसे समझा कि मैं प्रेम होता है । हाँ, प्रेम करना और प्रेम पहिचानना नहीं करता, प्रेनकरता हूं तभी तो उसे डाटता डप- दोनों ही कठिन है । मोह सरल और आकर्षक टता रहता हूँ। मुझे डर है कि उसमें अहंकार न है पर अन्त में उससे दोनों का नुकसान होता है। आजाय, वह अपने को सर्वज्ञ न समझने लगे, मोहिनी माता के दृष्टान्त से यह बात स्पष्ट हो जायगी। अपने मुँह से अपनी तारीफ़ न करने लगे । इन मोहिनी माता दोषों से मनुष्य का विकास रुक जाता है, वह यश जूटने जाता है, पर यश के योग्य होने पर एक नगर में एक विधवा स्त्री रहती थी भी बह यया के बदले निन्दा, और हँसी पाता है, जिसका एक ही लड़का था । एक तो इकलौता वह सम्मान रटने जाता है पर घणा और अपमान वेटा फिर दूसरा कोई सहारा नहीं, इसके अतिरिक्त पाता है। सन्मान और यश दूसरों के दिये हुए मोहिनी मूढ़ भी काफ़ी थी इसलिये उसे अपने ही अच्छे होते है। इनकी छीनाझपटी से ये नहीं लड़के का गहरा मोह था। निरंकुश रहने से. मिलते और जो कुछ मिलते हैं उनमें स्वाद भी नहीं लड़का उइंड होने लगा । जब वह कोई बदमाशी रहता बल्कि उनके सम्पर्क से पुराना यश और करता और पड़ोसी उलहना देते तो वह लड़के मान भी बेस्वाद हो जाता है इसीलिये मैं उस पर के अपराध का विचार किये बिना पड़ौसियां से अंकुश लगाता। मैं चाहता हूं कि वह मुझ से लड़ने लगती । अगर पड़ोसी इतना प्रभावशाली नीबदा विद्वान और संयमी बने । यह तभी हो होता कि उससे लड़ना कठिन होता तो वह सकता है जब बब मेमनार बाते जल्दी से जल्दी लड़के को अंचल से ढककर रोने लगती । इस * मेरे बाद कुछ अपनी कमाई भी करे। प्रकार कहीं जीभ चलाकर और वहीं आंस दिखाकर इसलिये मैं उसे जीवन की और विद्वत्ता की वह पड़ौसियों को हरा देती और अपने लड़के पर अटियाँ बताया करता हूं। ऐसा न करूंगा तो आंच तक न आने देती। विद में ही बह कृतकृत्य मानकर अपने को परिणाम यह हुआ कि लड़का चोर, नष्ट कर देगा। बदमाश और कर हो गई । और जबानी के विद्वान बोने ना के एम म प्रेम प्रारम्भ में ही वह रंडीबाजी भी करने लगा। क. नाना तब उनमः नमनार में उद उमा भारी वेश्या से जब एक दूसरे आदमी लगा । परमपर नहर में चोर ने संबन्ध जोडाइमने उस आदन का और
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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