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________________ की वह पूरी सम्पत्ति है इसलिये लखपति न्याया, निर्णय कर सकता है । अपायता में भी कर्तव्याधीश को यह सोचना चाहिये कि मेरी सारी सम्पत्ति कर्तव्य के निर्णय में बड़ी मदद मिलती है। नहीं कोई ले जाता तो मझे कैमा लगता, तब वह को अधिक सुख जीवन का ध्येय है ही, जो गरीब के एक रुपये की चोरी का मूल्य समझ कसौटी के काम अमरना है। जायगा । आत्मौपम्य का विचार करते समय सिर्फ इस प्रकार कर्तव्याकर्तव्य निर्णय होने से घटना के रूप को न देखना चाहिये किन्तु घटना निर्दोष प्रवृत्ति का पता लग सकता है जो कि का जो सुख दःख रूप प्रभाव हो उमेदग्बन मदाचार का अवश्यक अंग है। चाहिये तत्र आत्मौपम्य भाव से ठीक ठीक निर्णय होगा। ___ भगवती अहिंसा के स्वरूप में निवृत्ति की मुख्यताहान पर भी आवश्यक प्रवृति.पर उपेक्षा प्रश्न - महात्मा ईसा कहा करत थे कि कोई नहीं की जासकती। फिर भी निवृत्ति से प्रारम्भ होने तुम्हारे एक गाल पर तमाचा मारे तो तुम दूसरा के कारण और उसकी मुख्यता होने के कारण गाल अगे करदो । ऐसे लोग आत्मौपम्य भाव से निषेध-परक अहिंसा शब्द का उपयोग उचित विचार करें तो दूसरे गाल पर तमाचा खाना ही आर आवश्यक है। कर्तव्य हो जायगा अथवा जैसे वे दूसरे गाल पर तमाचा खाकर दुखी नहीं होते वैसे दूसरों को भगवती का मातृत्व भी समझ कर किसी को भी तमाचा जड़ देंगे प्रश्न- भगवती अहिंसा में मातृत्व का जो उनका आत्मौपम्य भाव तो यही निर्णय करेगा आरोप किया गया है, उनका कारण सिर्फ रही और इससे तो बड़ा अन्धेर फैल जायगा। मालूम होता है कि अकस्मात् अहिंसा शब्द स्त्री उत्तर-महात्माओं को दुःख नहीं होता यह लिंग निकल्ला । अगर इस के स्थान पर सदाचार बात नहीं है बल्कि उनकी सुख-दुःख-संवेदन- या प्रेम शब्द होता तो ईबर के. दो अंश दो शक्ति तीव्र होने से अधिक दुःख होता है. परन्तु लिंग में न बताये जा सकते । अहिंसा शब्द का संयमी या वीतराग होने से के क्षुब्ध नहीं होते आकस्मिक रूप में श्रीलिंग होना क्या ईश्वर को यही उनकी विशेषता है। आत्मौपम्य से वे यह नर नारी के रूप में विभक्त करने का पर्याप्त अवश्य समझते हैं कि अमुक व्यवहार से दुस0 कारण है ! को बड़ा कष्ट होता है क्योंकि कष्ट ता उन्हें भी उत्तर-- नर और नारी के मिले बिना होता है, इसलिये वे किसी को तमाचा न मारेंगे। पूर्णता नहीं होती और ईश्वर पूर्ण है इसलिये उम हां, नमाचा खाते हैं खाने का उपदेश भी देते में ये दोनों अंश अवश्य हैं । ईश्वर का उपयोग हैं इसका कारण यह है कि वे भगवनी अहिंसा जब जग-कल्याण के लिये किया जाता है तब की साधना का एक ऐसा तरीका बताते हैं जिम उस का विचार और आचार अंश से मनुष्य अपने शत्रु को प्रेम से जीत सके। उपयोगी होता है । विचार अंश बीज म्प होने खैर, आमौपम्य । स्वोपमता ] भावना एक से पुरुष अंश कहा जाता है और आचार अंश ऐसी कसौटी है जिमसे मनुष्य कर्तव्याकर्तव्य कल्याण मुष्टि का व्यापक उगदन होने से नारी
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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