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________________ सत्यामृत - - सुपात्र हो वहाँ यश न मिले या कम मिले तो भी . १ बंचकदान--किसी को ठगने के लिये वहाँ दान दे सके और दान निरुपयोगी आदि धोखा देने के लिये अनैतिक स्वार्थ सिद्ध करने के हो पर यश अधिक मिलता हो तो भी वह वहाँ लिये दान देना वंचकदान हैं | यह पाप है। न.दे. यश की पर्वाह न करे। २--भक्तदान--इस शर्त पर दान देना कि यश की लालमा तीब्र होजाने पर दान दान हमारा नाम जोड़ो, हमारी मूर्ति या चित्र स्थापित नहीं रहता लेन देन अर्थात् व्यापार हो जाता है। · करो, हमारे नाम का शिलालेख आदि लगाकर विश्वकल्याण के लिये दान किया जाय तो विश्व रखो, मुक्तदान है । यह दान तो है पर कल्याण रूपी अन्न के साथ यश-रूपी भूसा मिल इसका फल पहिले ही भोग लिया गया है, इसही जाता है इसलिये यश को ध्येय न बनाना लिये इसका आध्यात्मिक मूल्य नष्ट हो गया है। चाहिये। ३-मत्तदान----घमंड में आकर दूसरे को __ यश आदि के लिये दान करनेवाला मनुष्य नीचा दिखने के लिये दान करना मतदान है । ईमानदारी से धन पैदा करने की पर्वाह नहीं इसका भी आध्यात्मिक मूल्य कुछ नहीं हैं। करता वह किसी भी तरह सम्पत्ति पैदा करता है । इन दोनों दानों में पात्र आदि का विवेक और यश का आनन्द लूटना चाहता है पर जिसे , भी बहुत कम हो जाता है। इन दानों का यश के आनन्द की पर्वाह नहीं है वह प्रायः पाप उपयोग भी है पर अगर दान इन श्रेणियों न से सम्पत्ति पैदा करने की कोशिश न करेगा वह __ आकर अच्छी श्रेणियों में आवे तो बहुत अच्छा। देखेगा कि दान तो विश्वकल्याण के लिये करना है सो यदि धन पैदा करने में ही विश्व का महान ४-व्याकुलदान-कोई भिखारी माँग-माँग अकल्याण हो जाय तो दान के द्वारा कल्याण कर परेशान कर रहा है, या शर्मिन्दा कर रहा. करने की इच्छा से वह अकल्याण क्यों करना है उससे पिंड छुड़ाने के लिये दान देना व्याकुलचाहिये । पैर धोने के लिये कीचड़ में पैर डालने दान है । यह क्षन्तव्य है कर्तव्य नहीं । का क्या अर्थ है ! ५ रूढिदान-विवेक या इच्छा से नहीं किंतु ___गुप्तदान इसीलिये महान है कि उसमें यश जहाँ रूढ़ि का पालन करने के लिये ही दान लेकर न तो दान का बदला लिया जाता है न किया जाय वह रूढिदान है। इसका भी आध्यापाप की उत्तेजना को साधन मिलता है। मिक मूल्य नहीं है । पर देनेवाले में श्रद्धा हो धेय को पहिचानने के लिये दान के नव या मनमें कुछ संक्लेश न हो तो यह रूढिदान भेद कहे जा सकते हैं । इन भेदों में से कौन निरपक्षदान या अनामदान बन जायगा । दान की सा दान किस श्रेणी में हैं इसका पता लगाया जो रूढ़ियाँ उपयोगी हैं उन्हीं के पालन में दान जा सकता है। . उत्तम होता है अन्यथा सूदिदान व्यर्थ हो जाता है ? १ वंचक दान, २ भुक्तदान, ३ मत्तदान, ६-प्रत्युपकार दान-किसी आदमीने हमारा '४ व्याकुलदान, ५ दिदान, ६ प्रत्युपकारदान, उपकार किया हो किसी संस्था से हमने किसी ७ निरपेक्षदान ८ अनामदान, ९ गुप्तदान। प्रकार का लाभ उठाया हो तो उसके बदले में
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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