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________________ ३३९] सत्यामृत जिससे मेहमान सुन सकें कि मुझे क्या जरूरत और फिर चौदह आने में सौदा हो सकेगा, पर है मैं तो मेहमानों के लिये ले जाता हूँ उनका उतने में तो सौदा किया नहीं जा सकता इसलिये सन्मान करने में भी आपको बुरा लगता है तो हमने अठारह आना दाम बताया, उसने चौदह जाने दीजिये, यह पड़ी है, अथवा इस तरह आना कहा अन्त में कुछ हम घटे कुछ वह बढ़ा, चिल्लाया कि मुझे क्या करना है मैं तो अमुक एक रुपया में सौदा जम गया । यह अतध्य बीमार को यह चीज दे रहा हूँ, मैं तो इसीसे भर भाषण आरम्भज है । जरूरी तो यही है कि पेट रोटी भी नहीं खाता भूखा रहता हूँ। उसके दूकानदार एक बात की दूकान बनाले पर कभी चिल्लाने से मेहमान तथा अन्य रोगी आदि ने कभी ऐसा होता है कि एक बात की दूकान चल मुखिया को मनही मन बुरा समझ लिया, निन्दा नहीं पाती । एक बात की दुकान में न ज्यादा न की, कदाचित् द्वेष भी पैदा हो गया । कम, ऐसा नियत मुनाफा रक्खा जा सकता है पर देखने में यह भ्रमज अतथ्य भाषण हुआ है जब दूकानदाग में प्रतियोगिता होती है तो वे कोई चीज नियन मुनाफे से कम मुनाफा लेकर या मुनाफा क्योंकि चिल्लानेवाले ने भ्रम से कुछ का कुछ न लेकर बेचते हैं और दूसरी चीजमें अधिक मुनाफा समझ लिया है पर वास्तव में यह भ्रमज नहीं है। ले लेते हैं, इस प्रकार टोटल बराबर कर लेते हैं पर भ्रमज तो वहाँ कहा जायगा जहां इन्द्रिय या बुद्धि या ज्ञान संस्कार के कारण कोई भ्रम होगा, कषाय इसमें एक बातवाला दूकानदार मारा जाता है इसलिये कुछ दिन बाद वह भी अनेक बात में के कारण जो भ्रम होता है बह तक्षक अतथ्य सौदा करने लगता है। हाँ, दुकान असाधारण भाषण है। इसमें जो उग्र कषाय भाव है इसका जो बाहिरी जगत पर परिणाम होता है, एक हो या दुकानदार में बहुत दिनों तक घाटा सहने मनुष्य की सरलता का जिस निर्दयता से उपयोग की ताकत हो तो एकबात की दुकान जमजाती है, अथवा किसी जगह व्यापारियों में प्रतियोगिता किया जाता है उसको देखते हुए यह बहुत ही नहीं होती तो वहाँ भी एकबात की दूकान नांव अतथ्यभाषण है महिला उग्र पाप है। इसलिये भ्रमज अतथ्य भाषण का विचार बौद्धिक सहज ही में जम सकती है । पर इन कठिनाइयों को कोई हल न कर सके और अनेक बात में कारणों को देखकर करना चाहिये द्वेषादि वृत्तियों सौदा पक्का करे तो यह आरम्भज से पैदा होनेवाला भ्रम, भ्रम नहीं है तक्षण आदि अतथ्य कहलायगा। पर मानलो ऐसा ग्राहक अपनी दुकान ७ आरम्भज-अनभ्य- र आदि में पर आया जो आपसे साधारण ग्राहक की तरह जो अतथ्यभाषण जरूरीसा हो जाता है और बार बार भाव न करेगा, आप जो कहेंगे वही जिसमें किसी को ठगने की वृत्ति नहीं रहती सिर्फ मान लेगा तो उसको साधारण ग्राहक की तरह उचित लाभ लेने और उचित रहस्य छिपाने की भाव बताना और साधारण ग्राहक से अधिक यत्ति रहती है वह आरम्भज-अतथ्य है । जैसे- मुनाफा लेकर सौदा देना भक्षकअतथ्य है किमी ग्राहक को एक रुपये में सौदा देना है पर बल्कि अमुक अंश में चोरी है । ऐसे विश्वस्त हम एक रुपया कहेंगे तो वह बारह आना कहेगा ग्राहकों से एकबात की दुकान की तरह साधारण ।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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