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________________ भगवती के अंग कमजोरी की ओट में प्रबोधिनी कमावनः सकती है। पर जब तक वह प्रेमज अधात नहीं का रूप दिखाना कभी कभी कुछ अच्छा भले ही बन जाता तब तक उसे संयम नहीं हो पर यह साधना नहीं है संयम नहीं है, बहुत कह सकते। से बहुत वह चतुराई है। कापटिक -- के लिये अपात का ३ निरपेक्ष-जिनके घात से हमारा कुछ मत- ढोंग करना कापटिक अघात है । अघात के लब नहीं निकलता उनका घात न करना निरपेक्ष ढोंग के कई कारण हो सकते है, कोई महान अघात है । एक आदमी को कौवे का मान सन्द धात कराना या अपनी लापर्वाही कायरता नहीं है इसलिये वह कौवे का शिकार नहीं करता आदि छिपाना अहंकार का पोषण करना यह निरपेक्ष अघात है, यह भी संयमरूप या आदि। प्राभार-गवत रूप नहीं है। से इस आशय से किसी योग्य चिकित्सा प्रश्न-एक पौराणिक कथा है कि एक भील में मुम प्राणियों के घात का बहाना बनाना कि को एक साधु ने दया धर्म का उपदेश दिया। अगर यह जिन्दा रहेगा तो अमक काम में बाधक भील का धंधा शिकार था इसलिये वह प्राणरक्षण होगा इसलिये जितनी जल्दी यह मरजाय उतना व्रत स्वीकार न कर सका पर साधु के करने से अच्छा । यहां उसे मार डालना लक्ष्य है पर सूक्ष्म उसने यह सोचकर कौवे का मांस छोड़ दिया कि प्राणियों के अबान का बहाना है यह कापटिक उसे कौवे का मांस पसन्द नहीं है। कथाकार ने अघात है। उस भील की तारीफ की और उसका फल भी अपने को पुजबाने के लिये, दूसरों को अच्छा बताया। जब यह संयमरूप नही हे तो धोखा देकर धन छूटने के लिये सक्ष्म अघातों को कथाकार ने भील का समर्थन क्यों किया ! जरूरत से ज्यादा महत्व देना भी कापटिक अघात उत्तर-कौवे के मांस का निरपेक्ष त्याग तो है। संयम नहीं था, पर भील को प्रतिज्ञा लेने की प्रश्न--किसी ने अमुक प्रकार का शान्तिमय आदत पड़ी, बन्धन ढीला ही क्यों न हो पर पवित्र जीवन बिताने का निश्चय किया हो इसलिये उसमें वह बँधा, यह तारीफ की बात है। और बह किसी के काम में न पडता हो अर्थी उप जब एक वैद्य ने दवामें कौवे का मांस बताया पर संन्यास योगी हो तो क्या उसके अघात को भी प्राणत्याग देने पर भी उसने उसे स्वीकार न कापटिक अघात कहा जायगा। किया तब वह निरपेक्ष अघात न रहा प्रेमज अचान उत्तर- सन्यास योगी में कपट नहीं होता बनगया इसलिये कथाकार ने भील का समर्थन उसका कोई अनुचित स्वार्थ नहीं होता इमलिये किया। उसमें कापटिक अघात नहीं माना जाता । अघात मनाय को संयम की तरफ झुकाने के लिये कापटिक है या प्रेमज इसका निर्णय उसके परिनिरपेक्ष अबात की भी प्रतिज्ञा दिलाई जाय तो णामों पर निर्भर है । कापटिक अघात असंसंयम की शिक्षणप्रणाली की दृष्टि से उचित हो यम है पाप है।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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