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________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म अथवा इसमें आश्चर्य ही क्या है ? एक बार सम्प्रदाय बन गया, और उसका परिग्रह हो गया कि फिर उसकी रक्षाके लिए कोई भी पाप क्षम्य लगने लगता है । सब सम्प्रदायोंका यही इतिहास है। प्रथमतः बौद्ध भिक्षुओंने ऐसी दन्तकथाएँ गढ़ना शुरू किया और उन्हें लोकप्रिय होते देख जैन साधुओंने बौद्ध भिक्षुओंसे भी अधिक अतिशयोक्तिपूर्ण कथाएँ रचकर उन्हें मात कर दिया । तुम कहते हो कि दीपंकर बुद्धकी ऊँचाई ८० हाथ और आयु एक लाख वर्षकी थी; तो हम कहते हैं कि हमारे ऋषभदेवकी ऊँचाई दो हज़ार हाथ और आयु ८४ लक्षपूर्व अर्थात् ७० लाख ५६ हजार करोड़ वर्ष थी ! फिर तुम्हारा दीपंकर बुद्ध श्रेष्ठ हुआ या हमारा ऋषभदेव ? कहिए ! बौद्ध भिक्षुओंने ऊँचाई और आयुमें स्त्रियोंको भी जोड़ दिया है। कल्पित बुद्धकी बात जाने दीजिए, स्वयं गोतम बुद्धके बारेमें भी उन्होंने यह लिखा है कि गृहस्थाश्रममें उनके ४० हजार स्त्रियाँ थीं, उन्हें सम्भवतः इसका ध्यान नहीं रहा कि समूचे कपिलवस्तुकी भी जनसंख्या इतनी नहीं होगी। जैन साधुओंने स्त्रियोंको चक्रवर्तियोंके लिए सुरक्षित रख दिया । श्वेताम्बरोंके मतमें चक्रवर्तियोंके एक लाख बानवे हज़ार स्त्रियाँ होती थीं; पर दिगम्बरोंके मतसे वे केवल छियानबे हज़ार ही थीं। शायद दिगम्बर जैन साधुओंको मात देनेका यह श्वेताम्बर साधुओंका प्रयत्न होगा। ऐसी इन गप्पोंमें चातुर्याम धर्म डूबकर लुप्त हो गया हो तो क्या आश्चर्य! इस धनी वर्गको खुश रखनेके लिए जैन साधुओं और बौद्ध भिक्षुओंने प्राकृत एवं पालि भाषाओंका त्याग करके संस्कृत भाषाको अपनाया; और उसमें पुराणों, काव्यों और दर्शनोंकी १ भारतीय संस्कृति और अहिंसा (वि० २।११६ ) । २ तिलोयपण्णत्ती, वि० ४.१३७२-७३ । ।
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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