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________________ आनन्द उपासक ४९. संशय रखना, (२) दूसरे सम्प्रदायकी इच्छा, (३) शंका निकालना, ( ४ ) अन्य संप्रदायकी ऐसी स्तुति करना कि सुननेवालोंको वह संप्रदाय पसंद आए, और ( ५ ) अन्य सांप्रदायिकोंसे मित्रता।" इसके बाद महावीर स्वामीने पाँच अणुव्रतों और सात शिक्षाव्रतोंके अतिचार* और अन्तमें मारणान्तिक सल्लेखनाव्रतके अतिचार बतलाए। जैन उपासकों, उपासिकाओं, साधुओं एवं साध्वियोंमेसे कितने ही इस व्रतका पालन करते थे। व्याधि अथवा वृद्धावस्थासे शरीर जर्जरित होनेपर वे अनशन या प्रायोपवेशन करके प्राण त्याग कर देते थे। आज भी कभी-कभी इस व्रतका आचरण किया जाता है। इस व्रतको 'अपश्चिम मारणान्तिकसल्लेखना जोषणाराधना' कहते हैं । इस व्रतके ये पाँच अतिचार हैं:( १ ) इह लोककी आशा, (२) परलोककी आशा, (३) कुछ दिन जीनेकी आशा, और ( ५ ) मरणके पश्चात् कामोपभोगोंकी आशा । पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाबत ग्रहण करनेके बाद आनन्द उपासक बोला, “ भगवन् , आजसे राजाभियोग ( राजाका कानून या हुक्म ), गणाभियोग (जातिका नियम ), बलाभियोग (बलप्रयोग ), देवाभियोग ( मन्नत-मनौती आदि ), गुरुनिग्रह (गुरुद्वारा दी गई चेतावनी ), उपजीविकाका भय और इनके अतिरिक्त अन्य तीर्थिक श्रमणों या अन्य देवताओंको नमस्कार करना मेरे लिए उचित नहीं है । तीथिकों द्वारा बुलाये बिना उनसे संभाषण करना उचित नहीं है; तथा उन्हें अन्न-पान, वस्त्र-पात्र आदि देना उचित नहीं है । परंतु ये पदार्थ मैं उचित रूपसे निर्ग्रथोंको देता जाऊँगा । इतना कहकर आनन्द W - 34W.A ___* पाँच अणुव्रतोंके अतिचार ऊपर दिये हैं। सात शिक्षाव्रतोंके अतिचार विस्तारभयसे नहीं दिये गये। उन सातमेंसे पहले तीन व्रतोंको गुणव्रत कहते हैं । देखिए पृष्ठ ८ परकी टिप्पणी ।
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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