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________________ .. इन चरित्रोंका निष्कर्ष पालन करनेवाले सूरिके लिए उचित था, यह नहीं कहा जा सकता। उन्होंने संन्यासका त्याग करके यह काम किया होता तो शायद उसे क्षम्य कहा जा सकता था। बप्पभट्टिकी जिन्दगी आमराजाके दरबारमें बीती । भिक्षुओंद्वारा राजाके साथ निकट सम्बन्ध रखे जानेका निषेध पालि साहित्यमें अनेक स्थानोंपर मिलता है और इस प्रकार राजाके साथ सम्बन्ध रखे जानेका एक भी उदाहरण नहीं पाया जाता । बौद्ध भिक्षु उपदेश देनेके लिए राजमहलोंमें जाते थे; परंतु अन्य बाबतोंमें वे बहुधा उदासीन रहते थे। राजाके साथ अतिपरिचय रखनेवाले भिक्षुओंका अन्य भिक्षु विशेष आदर नहीं करते थे। संभव है कि यह स्थिति महायान सम्प्रदायके समयमें बदल गई हो। परंतु अनेक सूरियोंके इन जीवन चरित्रोंपरसे यह स्पष्ट दिखाई देता है कि जैन सम्प्रदायमें राजाके साथ मित्रता रखना भूषणास्पद माना जाता था । आम राजाको जब किला नहीं मिल रहा था; तब उसे जीतनेका उपाय बप्पभट्टिने बताया। आम राजाका लड़का दुन्दुक अत्यंत दुर्गुणी था; फिर भी उसकी संगत छोड़नेको बप्पट्टि तयार नहीं हुए। उनके सम्बन्धमें मुनि कल्याणविजय अपने प्रबन्धपर्यालोचनमें कहते हैं । __“ प्रबन्धमें आए अनेक प्रसंगोंपरसे ऐसा दिखाई देता है कि बप्पभट्टिका काल शिथिलाचारका था और बप्पभट्टि एवं उसके गुरुबन्धु प्रायः यानका प्रयोग करते थे । फिर भी उन्होंने राजाको अपनी ओर खींचकर जैन समाजपर जो उपकार किया वह सचमुच अनुमोदनीय है।” ( पृष्ठ ६७) राजाश्रयके कारण कुछ मंदिर और उपाश्रय बनाये गये; शायद इसीको कल्याणविजयजी उपकार कहते हैं।
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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