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________________ बुद्धोंके साथ तुलना और जैनोंका ही नहीं, बल्कि सारे हिन्दुस्तानका कितना नुकसान हुआ, इसकी चर्चा इस पुस्तकमें उचित स्थानपर की जायगी। इन दन्तकथाओंमें एक विशेष बात यह है कि श्वेताम्बर जैन मल्लि तीर्थकरको स्त्री मानते हैं; परंतु दिगंबरोंको यह बात स्वीकार नहीं है । उनके मतसे किसी स्त्रीका केवली होना असंभव है; क्योंकि स्त्री नग्न नहीं रह सकती! उल्लिखित ६३ शलाका पुरुषोंकी कथाएँ हेमचन्द्राचार्यने 'त्रिषष्ठिशलाका-पुरुषचरित' नामक ग्रंथमें दी हैं। उनमेंसे केवल पार्श्वनाथकी कथाका सारांश हम यहाँ देते हैं। पार्श्वनाथकी कथा वाराणसीके अश्वसेन राजाकी पत्नी वामादेवीके चैत्र कृष्ण चतुर्दशीके दिन विशाखा नक्षत्रमें गभ रहा, और उसने पौष कृष्ण दशमीके दिन अनुराधा नक्षत्रमें एक पुत्रको जन्म दिया । इन्द्र आदि देवोंने उसका स्तोत्र गाया और अश्वसेन राजाने कैदियोंको बन्धमुक्त करके बड़े ठाठसे पुत्रजन्मोत्सव मनाया । वामादेवीने उस पुत्रके उदरमें (कोखमें) रहते समय अंधेरी रातके बावजूद अपनी बाजूमें (पार्श्वतः) रेंगनेवाला एक साँप देखा था । राजाको उसका स्मरण हो आया और उसने लड़केका नाम पार्श्व रखा । पार्श्व जब बालिग हुआ तब उसकी ऊँचाई नौ हाथ थी। । उस समय अश्वसेन राजाके पास एक अपरिचित दूत आया । राजाने उससे आगमनका कारण पूछा तो उसने कहा, “ महाराज, मैं कुशस्थली नगरीके राजा प्रेसनजित्के यहाँसे आया हूँ। उस राजाके प्रभावती नामकी एक अत्यंत रूपवती कन्या है । जब वह अपनी सखियोंके साथ
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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