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________________ कालमें कुछ जैनी प्रकट रूपसे मांसाहार करते थे इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण मिल गया, तो इस लिए कोई यह नहीं कहता कि आजके जैनी मांसाहार करें और न इसकी भी कोई सम्भावना है कि आजके जैनी मांस खानेके लिए पुराने सुबूतका उपयोग करेंगे। जैन धर्मका यह उपदेश असंदिग्ध है कि मांसाहार न करना ही श्रेष्ठ जीवन है। ऐसी हालतमें पुराने समयकी परिस्थिति क्या थी, इसकी चर्चासे "बिगड़नेका वास्तव में कोई कारण नहीं था। अधिकसे अधिक इतना ही तो साबित होगा कि मांसाहारके विषयमें आजके जैनियोंने महावीर स्वामीके समयकी अपेक्षा काफ़ी प्रगति की है। इसमें बुरा माननेकी क्या बात है ? पण्डित सुखलालजीने जो एक बात सुझाई है, वह भी सोचने-लायक है। वे कहते हैं कि महावीर स्वामीका अहिंसा-धर्म प्रचारक धर्म था, इसलिए उसमें समय-समय पर विभिन्न जातियोंका समावेश हुआ है । जिस प्रकार अनेक सनातनी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य महावीर स्वामीका उपदेश सुनकर जैन हुए, उसी प्रकार कई क्रूर, वन्य और पिछड़ी हुई जमातोंके लोग भी उपरत होकर जैन धर्ममें प्रविष्ट हुए थे। ऐसे लोग जैन धर्मका स्वीकार कर चुकनेके बाद भी एक अरसे तक मांसाहार करते रहे हों, तो उसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। अतः यह साबित होनेसे कि पुराने समयमें कुछ जैन लोग मांसाहार करते थे, यह अनुमान लगाना ग़लत होगा कि सभी जैनोंके लिए मांसाहार विहित था। यह बात निर्विवाद है कि मांसाहार-त्यागके विषयमें जैन धर्मने मानवीय प्रगतिमें सबसे अधिक वृद्धि की है । ब्राह्मण धर्म, वैष्णव धर्म, महानुभाव धर्म आदि पन्थोंमें भी मांसाहार त्यागका आग्रह दिखाई देता है। इन सबने मिलकर महान् कार्य किया है। परन्तु यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इन सबने मांसाहारी लोगोंके साथ अपना आदान-प्रदान बंद करके और रोटी-बेटीके व्यवहार पर प्रतिबन्ध लगाकर अपना ही प्रचार कुंठित कर लिया है।
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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