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________________ अपरिग्रह रक्षाके लिए हिंसा एवं असत्यकी ज़रूरत आ पड़ती है। इस प्रकार यह दुष्टचक्र (Vicious Circle ) लगातर चलता रहेगा। अपरिग्रह ___ कुछ लोग सर्वसंग छोड़कर अपरिग्रही बनें और कुछ लोग तलवार या व्यापारके बलपर मालदार बनकर इन अपरिग्रही लोगोंको पोसते रहें, यह तो अपरिग्रहका विपर्यास है। सारे समाजके अपरिग्रही बने विना समाजका हित होना असम्भव है। ऐसे अपरिग्रही समाजका निर्माण रूसमें हो रहा है, और अपने देशके आसपासके इलाकोंमें भी ऐसे ही समाजका निर्माण करनेका प्रयत्न सोवियत नेता कर रहे हैं । पर अंग्रेज और अमेरिकन धनिकोंको यह पसन्द नहीं है; इसलिए वे सोवियत राजनीतिज्ञोंको परास्त करनेकी चेष्टा कर रहे हैं। विशेष प्रयत्नोंके बिना हिन्दुस्तानका राज मिलनेपर अंग्रेज़ोंने भूमध्यसागरपर अपना प्रभाव प्रस्थापित करनेका प्रयत्न किया; जिब्राल्टर और माल्टापर कब्जा कर लिया और मिस्रको अपना मातहत बना लिया । फिर पूर्व एशियामें बर्मा, मलाया आदि देश जीत लिये। अमेरिकाने एकके बाद एक यूरोपीय राजाओंको दक्षिण अमेरिकासे निकाल दिया और अन्तमें क्यूबा टापूकी रक्षाके लिए जाकर, स्पेनसे फिलिपीन टापू भी जीत लिये। इन सारी करतूतोंको अमरीकी लोगोंने 'मनरो डॉक्ट्रीन' (मनरोका सिद्धान्त) का सुंदर नाम दिया; पर जब सोवियत रूस आत्मरक्षाके लिए ही अपने आसपासके राज्योंमें साम्यवादी शासनप्रणाली प्रस्थापित करना चाहता है तो अपने साम्राज्यकी डींग हाँकनेवाले अंग्रेज़ और मनरो डाक्ट्रीनका जप करनेवाले अमेरिकन एकदम चिल्लाने लगते हैं कि सोवियत अपना विस्तार ( Expansion) करना चाहता है ! “ यदि तुम औरोंके देशमें जाकर
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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