SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९५ अब भी मनुष्य इस आग्रहको छोड़नेके लिए तैयार नहीं है । हमारी डेमॉक्रसी ( जनतंत्र ) ही सत्य है और तुम्हारा कम्यूनिज्म ( साम्यवाद ) असत्य है, इस हठधर्मीसे ही आज और एक महायुद्ध छिड़ना चाहता है । ऐसी स्थिति में सत्यका विचार अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रहके यामोंके अनुसार किया जाना चाहिए । हम अपने जिस जनतंत्रको सत्य मानते हैं, वह क्या इन तीन यामोंपर अधिष्ठित है ? यदि उसकी रक्षा के लिए हमें परमाणु बमका प्रयोग करना पड़े, तो वह अहिंसापर अधिष्ठित नहीं होगा। अगर उसके लिए पिछड़े हुए लोगोंकी स्वतंत्रता छीननी पड़ती है और उन्हें व्यापारके द्वारा चूसना पड़ता है तो वह अस्तेयपर आधारित नहीं है, उसके लिए सारी दुनियाका सुवर्ण जमा करना पड़ता हो तो वह अपरिग्रहपर अधिष्ठित नहीं है । अतः ऐसे जनतंत्र के लिए युद्ध करना निरी मूर्खता है । क्रूसेड ( जिहाद ) जैसे धर्मयुद्ध केवल अज्ञानके कारण हुए; उनमें सत्यका लवलेश भी नहीं था । उसी तरह हमारी डेमॉक्रसीमें भी वह नहीं है । यह बात यदि अमेरिकन और अंग्रेज़ लोग समझ लें तो आज जो युद्धकी तैयारी चल रही है वह तुरन्त बन्द हो जायगी । सत्य पदार्थविज्ञानमें जो नये नये आविष्कार हो रहे हैं, वे सत्य अवश्य हैं; पर यदि वे अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रहके यामोंको ख़त्म करने - वाले हों तो उनसे लाभ होने के बजाय दुःख ही बढ़ेगा। वैज्ञानिकों ने अलग-अलग बम खोज निकाले; उनमें अन्तिम आविष्कार परमाणु बमका है। अमेरिकन लोग उसका उपयोग अपने परिग्रहको बढ़ाने के लिए करना चाहते हैं । वे कहते हैं, “देखो, हमारे हाथमें यह अद्भुत शक्ति है । 1 अतः तुम चुपचाप हमारे परिग्रहको स्वीकृति दे दो और उसे बरकरार रखने के लिए हमारे व्यापारी स्तेय ( लूट-खसोट ) को बढ़ने दो । दक्षिण
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy