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________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म उमर गद्दीपर आया। सन् ६४३ में उसका देहान्त हुआ। इन दो ख़लीफ़ाओंने इस्लामका बहुत प्रचार किया। इन दोनोंका रहन-सहन बहुत सादा था। अतः जनसाधारणपर उनका अच्छा प्रभाव पड़ा। उनके बाद जो खलीफा हुए वे बहुत विलासी थे; फिर भी उन्होंने इस्लामके प्रचारमें कोई कसर नहीं रखी। तलवारके बलपर ईसाई धर्मका प्रचार इस्लामकी छूत ईसाई धर्मको लगे बिना नहीं रही। जिस प्रकार खलीफा और मुसलमान बादशाह इस्लामका प्रचार तलवारके बलपर करते थे, उसी प्रकार ईसाई शासक भी शस्त्रबलपर अपने धर्मका प्रचार करने लगे । इसमें फ्रान्स एवं जर्मनीके शार्लमेन बादशाहने नेतृत्व किया । (सन् ७७१-८१४ ईसवी )। इस कार्यमें पोपका संपूर्ण आशीर्वाद था। बादमें स्वयं पोपने धर्मयुद्धका नेतृत्व ले लिया । धर्मयुद्धको अरबी भाषामें जिहाद और लैटिन भाषामें क्रुजाद कहते हैं । अंग्रेजीमें उसे क्रुसेड ( crusade ) कहते हैं । पोपके नेतृत्वमें ईसवी सन् १०९७ से १२५० तक ईसाई राजाओंने मुसलमानोंके साथ सात धर्मयुद्ध किये! धर्मरक्षाके लिए एक इससे भी अधिक भयंकर साधनका प्रयोग पोपने किया। ईसाकी १३ वीं शताब्दीमें उस समयके पोपने इन्क्विजिशन ( Inquisition) नामकी एक संस्थाकी स्थापना की । इस संस्थाके सदस्य पादरी ही होते थे और उनके दिये हुए निर्णयके विरुद्ध कोई अपील नहीं चल सकती थी। ईसाई धर्मके अर्थात् पोप और उसके पादरीमंडलके बनाये हुए नियमोंके विरुद्ध कोई जा रहे हैं, ऐसी शंका आते ही उन्हें इन्क्विज़िशनमें ले जाते और उन्हें या तो जिन्दा जला डालते
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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