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________________ विविध शकुनों द्वारा कालनिर्णय ५४५ कीटिका घृतवर्णाश्च, भ्रमर्यश्च यदाधिकाः । उद्वग-कलह-व्याधि-मरणानि तदा दिशेत् ॥१७९॥ . अर्थ-- अथवा कोई पुरुष नीरोगी हो या रोगी हो अपने आप से और दूसरे घर से, के भीतर हो या घर के बाहर शकुन के द्वारा कालनिर्णय करे। जैसे-सर्प, बिच्छू, कोड़े, चूहे, छिपकली, चिटियां, जू, खटमल, मकड़ी, दीमक, घृतवर्ण को चीटियां, भौरे आदि बहुत अधिक परिमाण में निकलते दीखें तो उद्वेग, क्लेश, व्याधि या मृत्यु होती है। उपानद्-वाहनच्छत्र-शस्त्रच्छायांग-कुन्तलान् । चंच्चा चुम्बेद् यदा काकस्तदाऽऽसन्नव पंचता ॥१०॥ अश्र पूर्णदृशो गावो गाढं पादर्वसुन्धराम् । खनन्ति चेत् तदानीं स्याद्, रोगो मृत्युश्च तत्प्रभोः ॥१८१॥ अर्थ-जूते, हाथी, घोड़े आदि किसो सवारी को अथवा छत्र, शस्त्र, परछाई, शरीर या केश को कौआ चुम्बन कर ले तो मृत्यु नजदीक समझो, यदि आंखों से आंसू बहाती हुई गायें अपने पैरों से जोर से पृथ्वी को खोदने लगे तो उसके स्वामी को बीमारी या मृत्यु होगी। अन्य प्रकार से कालज्ञान कहते हैं अनातुरकृते होतत् शकुनं परिकीर्तितम् । अधुनाऽऽतुरमुद्दिश्य, शकुनं परिकोर्त्यते ॥१२॥ अर्थ-पूर्व श्लोकों में स्वस्थ पुरुष के कालनिर्णय के लिए शकुन बताया गया है। अब रोगी मनुष्य को लक्ष्य करके शकुन कहते हैं। रोगी के शकुन में श्वान-सम्बन्धी शकुन कहते हैं दक्षिणस्यां वलित्वा चेत् श्वा गुदं लेढ्युरोऽथवा । लांगूलं वा तवा मृत्युः एक-ति-विविनः क्रमात् ॥१८३॥ शेते निमितकाले चेत्, श्वा संकोच्याखिलं वपुः । धूत्वा कणो वलित्वाऽङ्गंधुनोत्यथ ततो मृतिः ॥१८४॥ यदि व्यात्तमुखो लालां मुञ्चन् संकोचितेक्षणः । अंग संकोच्य शेते श्वा, तदा मृत्युन संशयः ॥१८॥ अर्थ-रोगी मनुष्य जब अपने मायुष्य-सम्बन्धी शकुन देख रहा हो, उस समय यदि कुत्ता दक्षिण दिशा में मुड़ कर अपनी गुहा को चाटे तो उसको एक दिन में मृत्यु होती है, यदि हदय को चाटे तो दो दिन में और पूछ चाटे तो तीन दिन में मृत्यु होती है। यदि रोगी निमित्त देख रहा हो उस समय कुत्ता अपने पूरे शरीर को सिकोड़कर सोया हो अथवा कानों ६२
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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