SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 554
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३८ योगशास्त्र : पंचम प्रकाश अर्थ- शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन पवित्र हो कर कालचक्र को जानने के लिए अपने दाहिने हाथ की शुक्लपक्ष के रूप में कल्पना करना चाहिए। तथाअधोमध्योर्ध्वपर्वाणि, कनिष्ठांगुलिगानि तु । क्रमेण प्रतिपत्वष्ठ्येकादशीः कल्पयेत् तिथीः ।। १३०॥ अवशेषाङ गुली - पर्वाण्यवशेष - तियोस्तथा । पंचमी - दशमी - राकाः, पर्वाण्यङगुष्ठगानि तु ॥ १३१ ॥ अर्थ - अपनी कनिष्ठा अंगुली के नीचे के पौर में प्रतिपदा, मध्यमपोर में षष्ठी तिथि और ऊपर के पौर में एकादशी तिथि की कल्पना करे। अंगूठे के निचले, मध्य के और ऊपर के पौर में पंचमी, दशमी और पूर्णिमा की कल्पना करनी चाहिए। अनामिका अगुली के तीनों पौरों में दूज, तीज और चौथ की; मध्यमा के तीनों पौरों में सप्तमी, अष्टमी और नवमी की तथा तर्जनी के तीनों पौरों में द्वादशी, त्रयोदशी और चतुर्दशी की कल्पना करनी चाहिए, वामपाणि कृष्णपक्ष, तिथोस्तद्वच्च कल्पयेत् । ततश्च निर्जने देशे, बद्धपद्मासनः सुधी ॥ १३२ ॥ प्रसन्नः सितसध्यानः, कोशीकृत्य करद्वयम् ॥ ततस्तदन्तः शून्यं तु, कृष्णं वर्णं विचिन्तयेत् ॥१३३॥ अर्थ - कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन बांए हाथ में दाहिने हाथ के समान कृष्ण पक्ष की तिथियों को कल्पना करे, उसके बाद बुद्धिशाली मनुष्य साधक निर्जन में जा कर पद्मासन लगा कर बैठे और प्रसन्नतापूर्वक उज्ज्वल ध्यान करके, दोनों हाथों को कमल - कोश के आकार में जोड़ ले और हाथ में काले वर्ण के एक बिन्दु का चिन्तन करे । तथा - उद्घाटितकराम्भोजस्ततो यत्राङ गुलीतिथौ । वीक्ष्यते कालबिन्दुः स, काल इत्यन कीर्त्यते ॥१३४॥ अर्थ उसके बाद हस्तकमल खोलने पर जिस-जिस अंगुली के अन्दर कल्पित अंधेरी या उजली तिथि में काला बिन्दु दिखाई दे, उसी अंधेरी या उजली तिथि के दिन मृत्यु होगी, ऐसा समझ लेना चाहिए । कालनिर्णय के लिए अन्य उपाय भी बताते हैं क्षुतविण्मेदमूत्राणि भवन्ति युगपद् यदि । मासे तत्र तिथौ तत्र, वर्षान्ते मरणं तदा ॥१३५॥ अर्थ - जिस मनुष्य को छींक, विष्ठा, वीर्यपात और पेशाब ; ये चारों एक साथ हो जाएं, उसकी एक वर्ष के अन्त में उसी मास और उसी तिथि में मृत्यु होगी । तथारोहिणीं शशभृल्लक्ष्म, महापथमरुन्धतीम् । ध्रुवं च न यदा पश्येद् वर्षेण स्यात् तदा मृतिः ॥ १३६ ॥
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy